For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक गुलदस्ते की तरह, सजा हमारा देश।

तरह-तरह के लोग हैं, तरह-तरह के वेश।।

 

जाति धर्म के फेर में, उलझ गया इंसान।
प्रेम शांति का मार्ग है, सत्य यही लो जान।।

 

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।

 

मक्कारी औ झूठ से, जो ना आये बाज।

उसकी भाषा लो समझ, पहचानो आवाज।।

(मौलिक व अप्रकाशित)* संशोधित

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 24, 2014 at 9:08pm

आदरणीय सौरभ सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2014 at 3:43pm

भाई शिज्जूजी, आपके दोहे शिल्प की दृष्टि से बहुत सार्थक हुए हैं. बस तनिक प्रयास आपको बहुत संतुष्टि देगा.
तथ्य के लिहाज़ से सभी दोहे संयत हैं बस कुछ मूलभूत अंतर उन शब्दों को ले कर है जो सनातनी हैं यानि universal हैं. उनको अलग या गलत अर्थ अवश्य दिया जा रहा है या दिया गया है लेकिन उससे उनका महत्व कम नहीं होता. एक सार्थक और सजग रचनाकार इन्हीं अर्थों में सचेत कहलाता है.

ऐसा ही एक शब्द है धर्म, जो पंथ कत्तई नहीं है. धर्म वस्तुतः एक ऐसी जीवन शैली का द्योतक है जिसे कर्तव्य-निर्वहन के तौर पर भी लिया जा सकता है. ऐसा ही अर्थ उसे मिलता भी रहा है.

फूल का खिलना उसका धर्म है. नदिया का बहना उसका धर्म है. पुत्र द्वारा अपने माता-पिता की सुनना और आज्ञा मानना या अपने किये से संतुष्ट करना उसका धर्म है.  एक चोर का धर्म ही चोरी करना है तभी वह चोर कहलाता है. वह चोरी नहीं करेगा तो अपनेधर्म से विलग हो जायेगा. फिर उसे कोई चोर नहीं कहेगा.

यह शब्द, यानि धर्म, अन्य किसी पंथावलम्बियों के पास नहीं होने से इसे पंथ के समकक्ष केवल रखा ही नहीं गया, अपितु इसका अनर्थ भी किया गया. लेकिन भला हो हमारे मंदअक्ल किन्तु शातिर मठों और उनके मठाधीशों का जिन्होंने इस झूठ को इतनी बार दुहराया-तिहराया, कि सामान्य ज़िन्दग़ी जीने वाले लोग इस शब्द और उसके अर्थ को ही पचड़ा समझने लगे.


चूँकि आप एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर प्रयासकर्ता व रचनाकार हैं इस लिए आपसे और आपके माध्यम से मैंने ये बातें साझा की हैं.
शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 4, 2014 at 8:45am

आदरणीया डॉ प्राची जी आपकी बात सही है मैं अपनी बात समझा नही पा रहा हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 20, 2014 at 2:34pm

धर्म कभी होता नहीं, विकास का आधार।...................इस पंक्ति की तार्किकता को एक बार फिर से देखें आ० शिज्जू जी, आप शायद पंथ या कट्टरवादी किसी सम्प्रदाय की बात कहना चाहते हैं.. यदि धर्म आधार नहीं होगा तो विकास क्या अधर्म के आधार पर संभव है?

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 20, 2014 at 9:24am

आदरणीया डॉ प्राची जी उत्साहवर्धन के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आपका मार्ग दर्शन बना रहे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 18, 2014 at 1:38pm

पृष्ठ में सर्व-धर्म समभाव और वसुधैव कुटुम्बकम की उन्नत अवधारणा रखते हुए सुन्दर दोहावली प्रस्तुत की है आ० शिज्जू जी 

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।.................बहुत सही और सुन्दर 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 7:47am

आदरणीय राजेश दीदी उत्साहवर्धन करने के लिये आपका आभार, आपका मार्गदर्शन बना रहे 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 7:46am

आदरणीय अनिल जी आपने मेरे प्रयास को सराहा आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 17, 2014 at 11:58am

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।------जबरदस्त ,शानदार दोहों में नगीना 

बहुत बहुत बधाई शिज्जू भाई दोहों में भी माहिर होते जा रहे हो दिख रहा है ,शुभ कामनाएं 

 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:41pm

आदरणीय!

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।................बहुत ही सुन्दर और स्वस्थ परिकल्पना जो सच से कोशों दूर.....................आपकी परिकल्पना हकीकत का रूप ले.................आमीन!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service