मेरे जब वो करीब आती है
सांस रुककर हमें सताती है
बात दिल की जो कहना चाहूं तो
बात कुछ और निकल जाती है।।
ये जो चिट्ठी किसी की आई है
अब वो अपनी नहीं पराई है
खाक मिलता है मुझे जिंदगी से
जिंदगी जून है जुलाई है।।
उनका चेहरा जब नजर आया
मेरी बातों में तब असर आया
करने इजहार अपनी प्रेयसी से
जमीं पर आसमां उतर आया।।
- मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपकी यहाँ प्रथम रचना पढ़ रहा हूँ | स्वागत है आपका श्री अतुल कुशवाहा ही | बहुत सुन्दर भाव रचना के लिए बधाई
आदरणीय ब्रजेश सर, उत्साहवर्धन के लिए आभार। सादर—अतुल
अच्छी रचना है! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय जितेन्द्र जी, सारथी जी और आदरणीया अन्नपूर्णा जी..आप सभी का मैं तहेदिल से आभार जताना चाहता हूं कि इतना समय निकालकर मेरा उत्साह बढाया, इन चार पंक्तियों के साथ...
इन बडे लोगों में अपना भी बसर होने लगा
हम भी शहरी, गांव मेरा भी शहर होने लगा,
हाथ में थामी कलम तो खुद—ब—खुद चलने लगी,
आप लोगों की दुआओं का असर होने लगा।। — सादर—अतुल
रचना के भाव अच्छे है आ0 अतुल जी ।
जिंदगी जून है जुलाई है।।...इस उपमा के लिए विशेष बधाई !..बढ़िया रचना ..सुन्दर भावों सहित !
बेहद सुंदर भाव, बधाई आदरणीय अतुल जी
आदरणीय अलीन जी, बहुत—बहुत शुक्रिया। सादर— अतुल
ये जो चिट्ठी किसी की आई है
अब वो अपनी नहीं पराई है
खाक मिलता है मुझे जिंदगी से
जिंदगी जून है जुलाई है।।.......................कुछ हटकर ............अच्छा लगा.
आदरणीय लक्ष्मण जी, हौसला देने के लिए आभार। सादर—अतुल
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