For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सात दोहे – '' रिश्ते ''

*******    ******

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल                            

 

तेरा  घोड़ा  तेज़  है , माना  मेरा  सुस्त

देखो  रिश्ता  हो  गया , पहले जैसे चुस्त

 

तू  माने  खुद को बड़ा , तो मैं भी हूँ शेर

बढ़ने  में  अब  दूरियाँ , नहीं लगेगी  देर

 

आपस की  कमियाँ भरें , यारी की  ये रीत

यही बढ़ाती  है  सदा , हर  नाते  में प्रीत

 

हाथ मिला के कब हुआ, मन से मन का मेल

ये भावों की बात है , ये अन्दर का खेल

 

मैं जैसा भी हूँ अभी , जो कर ले स्वीकार

उसकी सारी ग़लतियों, से मुझको भी प्यार   

***********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 1412

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Akash Verma on March 19, 2014 at 5:20pm

पढ़कर मन को ख़ुशी मिली और जीवन को जीने का एक नया अंदाज मिला , इन दोहो के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद्, आशा है आप आगे भी इसी तरह हमारा मार्गदर्शन अपने दोहो से करते रहेंगे। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 15, 2014 at 12:31pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी , सर्वश्रेष्ठ रचना चुने जाने पर हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:50pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:49pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा भाई जी , दोहों पर विस्तार से प्रतिक्रिया के लिये और सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2014 at 9:47pm

आदरणीय मनोज भाई ,  दोहों की सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2014 at 8:48pm

अच्छे दोहे हैं गिरिराज जी, बधाई स्वीकारें 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 11, 2014 at 6:43pm

नाराजी जो है कहीं , मिल के कर लो बात

खामोशी  देती  रही , हर  रिश्ते  को मात...संवाद जरूरी है. बहुत सुन्दर शिक्षा 

 

रिश्तों  को  भी चाहिये , इन्जन जैसे तेल

बिना  तेल  देखे बहुत , झटके खाते मेल    ....रिश्ते बनाना जितना आसान निभाना उतना ही कठिन                         

 

तेरा  घोड़ा  तेज़  है , माना  मेरा  सुस्त

देखो  रिश्ता  हो  गया , पहले जैसे चुस्त....समय जरूर लगेगा रिश्ते सुधर भी सकते हैं 

 

तू  माने  खुद को बड़ा , तो मैं भी हूँ शेर

बढ़ने  में  अब  दूरियाँ , नहीं लगेगी  देर...दोनों पक्ष सामान्य रहें ..रिश्ते निभेंगे 

 

आपस की  कमियाँ भरें , यारी की  ये रीत

यही बढ़ाती  है  सदा , हर  नाते  में प्रीत..आदरणीय सुन्दर सीख 

 

हाथ मिला के कब हुआ, मन से मन का मेल

ये भावों की बात है , ये अन्दर का खेल....सत्य है 

 

मैं जैसा भी हूँ अभी , जो कर ले स्वीकार

उसकी सारी ग़लतियों, से मुझको भी प्यार   सुन्दर भाव 

जय हो मंगलमय हो 

सादर आदरणीय 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 10, 2014 at 7:48pm

जग में सब नेता बने, कुल में सबका मान |

जग कुल दोनों नष्ट हो, कहते हैं विद्वान ||...

त्याग भाव ही मूल है, हर रिश्ते के साथ |

जिसके नाथ स्वयं प्रभू, वह है कहाँ अनाथ ||

धन्यवाद है आपको, समझ लिया है मर्म |

सुन्दर दोहों से निभा, कविताई का धर्म ||...बधाई हो आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2014 at 8:29am

आदरणीया वन्दना जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2014 at 8:27am

आदरणीय नादिर खान भाई , दोहावली की सराहना और उत्साह वर्धन करने के  लिये आपका आभारी हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
13 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service