बेटी |
बेटी से खुशनुमा है ये संसार दोस्तो |
रौशन इसी से सारा है घर-बार दोस्तो |
......... |
बेटी कही पे माँ कही बहना के रूप में |
पत्नी बहु ये बनके निकलती है धूप में |
सुब्हे किरन से शाम तलक घर संवारती |
बच्चो के रूप रंग को हर दम निखारती |
ये तो अजब निभाती है किरदार दोस्तों |
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ये सारी क़ायनात बदौलत इसी से है |
सारे जहाँ में फैला मोहब्बत इसी से है |
चंपा चमेली बनके चमन में महक रही |
बातों से यूं लगे की है बुलबुल चहक रही |
ये सबको दे रही है सदा प्यार दोस्तों |
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अपने पती के संग ये बनवास में रही |
जंगल में भूंख प्यास की हर मुश्किलें सही |
मां बनके दुआओं से ये जन्नत दिलाएगी |
इज्जत भी दिलाएगी ये शोहरत दिलाएगी |
इसकी दुआ में खुशियों का अम्बार दोस्तो |
सलीम रज़ा |
रीवा [म. प्र) |
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Comment
बहुत सुन्दर दिल छू लेने वाले भावों से सुसज्जित नज्म दिली दाद कबूलें
एक दो जगह टंकण त्रुटी है ठीक कर लीजिये ---जैसे सारे जहां में फैली मुहब्बत इसी से है -----अपने पति के संग
आदरणीय सलीम रजा भाई , बेटी के सन्दर्भ में बेहतरीन नज्म कही , मेरी बिटिया की ओर से भी हार्दिक बधाई स्वीकारें .
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