२२१ २१२१ १२२१ २१२ |
रिश्ते वफ़ा सब से निभाकर तो देखिए |
सारे जहाँ को अपना बनाकर तो देखिए |
इसका मिलेगे अज़्र खुदा से बहुत बड़ा |
भूखे को एक रोटी खिलाकर तो देखिए |
खिल जाएगा खुशी से वो चेह्रा गुलाब सा |
रोते हुए को आ प हंसा कर तो देखिए |
दुश्मन भी एक रोज़ मिलेगा वफ़ा के साथ |
परचम अमाँ का हर सू उड़ाकर तो देखिए |
हर राहगीर दिल से दुआ देगा आपको |
इस तीरगी में शमअ जलाकर तो देखिए |
खुश्बू से महक जाएगा घर बार आपका |
उजड़े हुए चमन को बसाकर तो देखिए |
इक चौंदवी का चाँद नज़र आएगा "रज़ा" |
जुल्फे रूखे हँसी से हटाकर तो देखिए |
सलीम रज़ा रीवा-09424336644
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सौरभ पांडेय जी आपकी दुआएँ ही काफ़ी है ........शुक्रिया
आपकी ग़ज़ल पर आज आ पाया हूँ. ग़ज़लों की कहन को तनिक और नयापन दें. और कसने की कोशिश करें, भाईजी.
बहरहाल, बधाई .. .
बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है ..हार्दिक बधाई
खिल जाएगा खुशी से वो चेह्रा गुलाब सा रोते हुए को आ प हंसा कर तो देखिए
बहुत सुन्दर
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.,,,बहन annapurna bajpai जी.,,,,आदरणीय AVINASH S BAGDE जी.,,
आप सभी को दिली शुक्रिया
आदरणीय सलीम भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , वाह वा ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आ० सलीम रज़ा जी सुंदर गज़ल हेतु बधाई स्वीकारें । हर एक अशर खूबसूरत बन पड़ा है ।
सारे जहाँ को अपना बनाकर तो देखिए....बहुत सुन्दर!सलीम रजा साहेब
आदरणी डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी..
आदरणीSanjay Mishra 'Habib' ...जी
आप सभी को नाचीज़ का दिली शुक्रिया..
सलीम रजा साहेब
आपकी ग़ज़ल में एक मासूमियत सी मुझे लगी i वही इस्की USP है i बेहतरीन प्रयास i
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