छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,
देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,
रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,
विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,
सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,
पाठक भी अब यही सोचते, कुछ लिख, कवि कहलाएँ।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, रचें किसलिए कविता,
रचना चाहे ‘खास’ न छपती, छपते ‘खास’ रचयिता।
छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,
देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जु जी, आपको यह रचना पसंद आई, यह मेरे लिए सुखकर है। आपका हार्दिक धन्यवाद
आदरणीया प्राची जी, आपकी टिप्पणी से कुछ कुछ संतोष हुआ, कि जो कुछ मैंने महसूस किया है उसमें कुछ तो सार है। रचना पर आपकी उपस्थिति संतोष प्रदान करती है।आपका मन से धन्यवाद
प्रिय सरिता जी, संजु जी, रचना की सराहना द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
आ० कल्पना जी
काव्य संसार के कुछ आयामों को आपने जैसा देखा समझा वह छन्न पकिया के माध्यम से आपने सांझा किया.. आपका नजरिया जानना भला लगा
शुभकामनाएं
आदरणीया कल्पना जी आपकी यह रचना काफी सधी हुई है और आपने बहुत खूबसूरती से अपनी बात कही है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
आदरणीय कल्पना दी हार्दिक बधाई सुन्दर प्रस्तुति पर
आ० कल्पना दी मुझे आपकी यह रचना बहुत ही रोचक ,सटीक एवं मजेदार लगी ..यह उन लोगों के लिए भी सबक है जो बिना लिखे ही कवि या लेखक बनना चाहते हैं .इस बेहतरीन रचना के लिए आपको कोटि-कोटि बधाई
आदरणीय सौरभ जी, आपका लिखा हुआ हर शब्द ध्यान से पढ़ा और आत्मसात किया। आपका हार्दिक आभार।
नमन आपको और मंच को, ज्ञान यहीं सब पाया।
सार-छंद का सार 'कल्पना', पूर्ण समझ में आया। सादर
आदरणीया राजेश जी, कल्पना मिश्रा जी, शशि जी, आप सबकी सराहना पाकर हार्दिक प्रसन्नता हुई, आप सबका सादर धन्यवाद।
आदरणीय अखिलेश जी, विजय जी, गिरिराज जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, मनोज जी, ओमप्रकाश जी, आप सबकी छंद पर इतनी सुंदर आत्मीय टिप्पणियाँ पाकर लगा कि कुछ सार्थक कह सकी हूँ। आप सबका मन से आभार। सादर
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