For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर बार - (रवि प्रकाश)

उस पार किनारा होगा,हर बार यही लगता है;
कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है।
मंज़िल पे जा निकलेंगे,ये ऊँचे-नीचे रस्ते;
फिर दौर हमारा होगा,हर बार यही लगता है॥
.
तपती राहों पे चल कर,
सूरज से आँख मिलाना;
रातों की बेचैनी को,शबनम के घूँट पिलाना।
बेकार न होंगे आँसू,नाकाम न होंगी आहें;
हर दर्द सहारा होगा,हर बार यही लगता है।
कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है॥
.
अक्सर कच्ची नींदों में,टूटे हैं बहुत से सपने;
उलझे हैं कहीं पे नाते,छूटे हैं कहीं पे अपने।
लेकिन दो ही दिन का है,ये तन्हाई का मौसम;
फिर मेल दुबारा होगा,हर बार यही लगता है।
कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है॥
.
वो लहर कहीं तो होगी,जो साहिल से टकराए;
वो सहर कभी तो होगी,जो परियों सी शरमाए।
गुलशन के सारे काँटें,कलियाँ बन के चटकेंगे;
फूलों में गुज़ारा होगा,हर बार यही लगता है।
कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है॥
.
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-11.03.2014

Views: 507

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on April 2, 2014 at 7:12pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ॰ सौरभ जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by Ravi Prakash on April 2, 2014 at 7:09pm
इतने सूक्ष्म विश्लेषण के लिए कोटि कोटि धन्यवाद आ॰ प्राची जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 7:30pm

आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद भाईजी. हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 24, 2014 at 3:32pm

मंज़िल पे जा निकलेंगे,ये ऊँचे-नीचे रस्ते;
फिर दौर हमारा होगा,हर बार यही लगता है॥

यही हौसला ज़िंदगी को सकारात्मक नज़रिए और सोच के साथ आगे बढाता है

तपती राहों पे चल कर,
सूरज से आँख मिलाना;.......................वाह बहुत सुन्दर

 

अक्सर कच्ची नींदों में,टूटे हैं बहुत से सपने;
उलझे हैं कहीं पे नाते,छूटे हैं कहीं पे अपने।
लेकिन दो ही दिन का है,ये तन्हाई का मौसम;
फिर मेल दुबारा होगा,हर बार यही लगता है।........................बहुत सुन्दर शब्दों में अपने मन की बात कही है, वाह

 

यह गीत बहुत पसंद आया आ० रवि प्रकाश जी

आपको बहुत बहुत बधाई

 

Comment by Ravi Prakash on March 14, 2014 at 10:16am
धन्यवाद आ॰ गीत जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2014 at 11:32pm

बहुत सुंदर रचना आदरणीय रवि जी, आपको हार्दिक बधाई

Comment by Ravi Prakash on March 12, 2014 at 2:10pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ॰ विजय मिश्र जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by Ravi Prakash on March 12, 2014 at 2:08pm
कोटिश: धन्यवाद आ॰ मयंक जी।
Comment by विजय मिश्र on March 12, 2014 at 10:48am
बहुत मुलायम जमीन दियी है भाई रविजी इस खूबसूरती से लदी मिजाज तर करती कविता को ---- " वो सहर कभी तो होगी,जो परियों सी शरमाए। "

हार्दिक बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ |
Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 11, 2014 at 11:22pm

क्या बात है...मेरी ओर से १०० में १००...बधाई हो आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service