कहो प्रिय , कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा.
मैं चाहता हूँ,
तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब.
अधरों को कहूँ लाल गुलाब .
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ
मेघ माल की .
लहराते आँचल को कहूँ
मधु मालती .
पर, अपवर्तन का अपना नियम है,
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में
खाना ढूंढते व्यक्ति पर,
प्लेटफार्म पर भीख मांगते
चिक्कट बालों वाली
छोटी लड़की पर..
देश के भविष्य से खेलते
झूठे वादे और बकवाद करते नेताओं पर.
मेरी संवेदना तुम्हें शायद
अर्थ हीन लगे, पर
यही है मेरा सत्य,
मेरा तल.
कहो! प्रिय, कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा..
नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आपका हार्दिक आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा .. आपको कविता इतनी भी अच्छी लगी तो लेखन सार्थक हो गया . मैं तो इसे पोस्ट ही नहीं कर रहा था. चार छः महीने से यह रचना पड़ी थी , फिर एक दिन सोचा पोस्ट करता हूँ ... आपका हार्दिक धन्यवाद ..
आ० नीरज नीर जी
रचना जिस ज़मीन पर हुई है मुझे बहुत पसंद आयी... इसी भाव भूमि पर मैंने भी एक रचना लिखी थी 'निगाहें' उसकी याद हो आयी.
मुझे ऐसा अवश्य ही लगा की कथ्य को सपोर्ट करने में रचना में संवेदनशीलता बीच की पंक्तियों में कुछ कम लगी... क्योंकि 'अपवर्तन का नियम' ये शब्द मुझे कुछ रूखापन लिए हुए लगे...
वैसे सुन्दर प्रयास हुआ है
आपको हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार आपका आदरणीय सौरभ जी ... रचना पसंद आयी हार्दिक धन्यवाद .
प्रस्तुति और बिम्बों के हिसाब से रोचक रचना हुई है. कथ्य में नयापन तो नहीं लेकिन उबाऊ भी नहीं है.
इस संवेदनशील रचना के लिए मंगलकामनाएँ.
हार्दिक बधाइयाँ.
आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब .
बहुत खूब भाई नीरज , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ स्व. साहिर लुधियानवी जी का एक शेर याद आ गया --
अभी न छेड़ मुहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का महौल खुश गवार नही -साहिर
आपका हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी .
बहुत खूब , सुंदर रचना बधाई आपको ।
हार्दिक आभार आदरणीय अभिनव अरुण जी .. आपके इस कथन ने बहुत उत्साहित किया है .. बहुत धन्यवाद.
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