कुत्ते का बच्चा
गया मर,
एड़ियाँ रगड़,
किसे फिकर,
काली चमकती सड़क,,
चलती गाड़ियाँ बेधड़क,
बैठा हाकिम अकड़,
कलफ़ कड़क,
सड़क पर किसका हक़?
क्यों रहा भड़क?
किसके लिए बनी
काली चमकती सड़क?
कुत्ता कितना कुत्ता है
चला आता है,
धुल भरी पगडंडियां
गाँव की
छोड़कर.
.. नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा .. हार्दिक आभार आपका .....कुत्ते का बच्चा, जैसा आपने सही कहा इसके पीछे के सत्य कुछ और ही , है , मेट्रो में रहने वाले बड़ी गाड़ियों में चलने वालों के लिए ये सर्वदा अवांछित ही रहते है, और इनकी भी मजबूरी है कि जिस गाँव में इनका घर है वहां पेट नहीं पलता .. मजबूरी मजबूर करती है कुत्ते सी जिंदगी जीने के लिए बड़े शहरों की गन्दी बस्तियों में ... हां धुल को धूल कर लूँगा आभार आपका ध्यान आकृष्ट करने हेतू .
जीव-जंतुओं के प्रति इतनी संवेदनशीलता आज तेज़ रफ़्तार में गाड़ियां दौड़ाते जोशीले चालकों में कहाँ...
अकसर ऐसे दृश्य हम सभी देखते हैं... और
कुत्ता कितना कुत्ता है................................इस पंक्ति में बहुत छिपे सत्य और भी हैं
चला आता है,
धुल भरी पगडंडियां ...............धुल को धूल कर लीजिये
गाँव की
छोड़कर.
इस संवेदनशील प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी .. कविता की पीछे की सोच को समझने और सराहने के लिए बहुत धन्य्यवाद.
एक सशक्त सोच से उभरी इस कविता के लिए हार्दिक बधाई, भाईजी.
शुभ-शुभ
हार्दिक आभार आपका आदरणीय विजय मिश्र साहब ..
डॉ आशुतोष मिश्र साहब हार्दिक आभार आदरणीय.
आदरणीय अभिनव अरुण जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद .
आदरणीय लडिवाला साहब हार्दिक आभार ..
आदरणीय गणेश जी आपका हार्दिक आभार..
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