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जो भूखा रो रहा उसको नही रोटी खिलाते हैं

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

जो भूखा रो रहा उसको नही रोटी खिलाते हैं

जो बुत हैं मौन मंदिर में उन्हें सब सर झुकाते हैं

 

जिकर होता है जिसका दोस्तों हर सांस में मेरी

मेरे दुश्मन का लेके नाम वो मेंहदी रचाते है  

 

जहाँ भी चाहते दिल फेंकते आदत है ये उनकी

नजर जब हमसे मिलती है तो वो कितना लजाते हैं

 

सजाये थे गुलाबी पांखुरी से पथ मगर अब क्या

जो पल्लू झाड़ियों में खुद ही अब उलझाये जाते हैं

 

गुलाबों की भी किस्मत आशु तुमसे कितनी अच्छी है

हसी के हाथ चूमे और फिर गेसू सजाते हैं

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2014 at 10:42am

आदरणीय भुवन जी. हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2014 at 10:25am

आदरणीय लक्ष्मण जी ..ह्रदय से आभारी हूँ ..यूं ही स्नेह बनाये रखें  सादर 

Comment by vandana on April 1, 2014 at 6:48am

जिकर होता है जिसका दोस्तों हर सांस में मेरी

मेरे दुश्मन का लेके नाम वो मेंहदी रचाते है  

 वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by annapurna bajpai on March 31, 2014 at 11:19pm

बहुत खूब ! गजल बधाई । 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on March 31, 2014 at 7:35pm
बहुत सुन्दर गजल है सर। हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2014 at 6:28pm

आदरणीय आशुतोष जी बढ़िया ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 4:53pm

गुलाबों की भी किस्मत आशु तुमसे कितनी अच्छी है

हसी के हाथ चूमे और फिर गेसू सजाते हैं.....बहुत खूब.

Comment by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 5:54pm

 काफी खूबसूरत अश'आर बधाइयाँ कबूलें 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 30, 2014 at 5:36pm

आदरणीय भाई आशुतोष  जी क्या खूब ग़ज़ल कही है हर शेर पर दाद कबूल करें ..

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