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गजल.....जमाना धूल-गर्दिश का-

गजल.....जमाना धूल-गर्दिश का

बह्र - 1222, 1222, 1222, 1222

इशारों ही इशारों में, इशारे कर रहे हैं हम।

तरफदारी हमारी तो, हजारों मर रहे हैं हम।।

उदारी नीति पावन पर, दिशा हर बार संहारी,
गरीबी भेड़ जैसी बस, कुॅंओं को भर रहे हैं हम।।1

भिड़े हैं शेर-हाथी गर, शिवा-राणा लड़े गॉंधी,

हमें भी देखिये साहब, गधों से डर रहे हैं हम।2

कहानी जब सुनाते हैं, हमें तो नींद आती है,

उड़ा कर यान मंगल तक, पतन को वर रहे हैं हम।3

निकाले दॉंंत हाथी के, चलाये तीर-अंकुश भी,

कठिन है दुर्दशा कहना, सड़क पर मर रहे हैं हम।4

न जंगल है, न पानी है, बने हैं आशियां ऊँचें,

उड़े पंछी जहॉं चाहें, महज पत्थर रहे हैं हम।5

रहे तन खुश वरण माया, सफलता चूमती नभ को,

छिपा कर घूस काला धन, तरक्की कर रहे हैं हम।।6

नसीहत क्या करें 'सत्यम', जमाना धूल-गर्दिश का,

हवा का रूख जिधर को हो, उधर ही क्षर रहे हैं हम।।7

के0पी0सत्यम/मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Saarthi Baidyanath on April 3, 2014 at 4:51pm

एक बढ़िया ग़ज़ल कहने का प्रयास ..

इशारों ही इशारों में, इशारे कर रहे हैं हम।...बहुत खूब ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 3, 2014 at 10:25am

बेहतरीन आदरणीय केवल प्रसाद जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 8:58pm

आदरणीय सत्यम भाई जी , बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है , हर शे र लाजवाब हैं , आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2014 at 7:38pm

आ0 भुवन भाई जी,  गजल को पसन्द करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत शुकिया। सादर,

Comment by भुवन निस्तेज on April 1, 2014 at 5:44pm

आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें .
हर शेर उम्दा है विशेष कर मुझे ये पसंद आया..

न जंगल है, न पानी है, बने हैं आशियां ऊँचें,
उड़े पंछी जहॉं चाहें, महज पत्थर रहे हैं हम।

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