मुक्तक
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मै भी खुश और तुम भी खुश लेकिन दुखिया सारा संसार
कथनी करनी में भेद रखता कैसे हो सुखी परिवार
आओ मिल हम खुशियां बोयें उन्नत हो सकल संस्कार
टुकड़ों में हम बंटे है फिरते सबका एक जगत आधार
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जिंदगी की भाग दौड़ में रास्ते बदल जाते हैं
लाख रंजिश सही मिलते ही कदम ठहर जाते हैं
आसां नही यूँ ही किसी को इस कदर भुला देना
जख्म इतने सीने में सूखते फिर हरे हो जाते हैं
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मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Comment
अब फिर से, क्या कहूँ? और क्यों?
आदरणीया प्राची जी . आज बहुत अच्छा लगा . कोई है अपना . जब नाती पोते मेरी मूँछ उखाड़ते हैं , दर्द भी होता है , मैं मना नही करता और क्यों शब्द नही लगाता. बहुत कोशिश करता हूँ कि मात्रा का प्रयोग करूँ, गेयता बनायें रखूँ. ईश्वर की मर्जी .
, क्या कहूँ? --पूरा अधिकार आपको है .
और क्यों? --ये निर्णय आप स्वयं में ही लें.
सदेव आपका स्वागत है . मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं .
सादर .
आदरणीय
'सिर्फ प्रयास पर बधाई दिया जाना' अपने आप में ही कुछ कमियों के अवश्य ही होने को इंगित करता है...
मुक्तक में सबसे ज्यादा प्रवाह आवश्यक है और ऐसा प्रवाह जो हर पंक्ति में समान गेयता लिए हुए हो..... समान गेयता के लिए बह्र की समझ या मात्रिकता का ज्ञान ज़रूरी है...जिसके लिए आपको पिछले एक दो साल से टोका जा रहा है...
और पंक्तियों में तुकांतता का निर्वहन कैसे किया जाना चाहिए..अब तक आपको इसके प्रति भी कई-कई बार कहा जा चुका है..
लेकिन.............................. अब फिर से, क्या कहूँ? और क्यों?
खैर, आपने मेरे चुप रह जाने को मान दिया... आपका ह्रदय से आभार आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी
आदरणीया प्राची जी ,
सादर
निश्चित तौर पर प्रयास किया है, कमी भी है. पर मंच की परम्परा के अनुसार कमी इंगित करते हुए ठीक करने का स्नेह अबकी बार आपके द्वारा नहीं दिया गया.
आभार प्रोत्साहन हेतु
मुक्तक प्रयास पर बधाई आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी
आदरणीय श्री विजय जी
सादर
आपका स्नेह है
सादर आभार
सार्थक मुक्तक लिखे हैं। बधाई।
आदरणीय श्री जितेन्द्र जी
सादर सस्नेह
प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीय श्री लड़ीवाला जी
सादर
आपका स्नेह मेरे प्रति अभी भी बना है
आभार
सुन्दर मुक्तक रचना के लिए बधाई
जीवन के प्रति एक सही सीख देती हुयी रचना ,आपकी अनुभवी लेखनी को नमन आदरणीय प्रदीप जी
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