1222 1222 1222 1222
***
सियासत पूछ मत तुझमें पतन क्या-क्या नहीं देखा
बहुत खुदगर्ज देखे हैं मगर तुझ सा नहीं देखा
**
महज कुर्सी को दुश्मन से करे तू लाख समझौते
चरित तुझ सा किसी का भी यहाँ गिरता नहीं देखा
**
सपन में भी दिखा करती मुझे तो बस सियासत ही
सियासत से मगर कच्चा कोई रिश्ता नहीं देखा
**
बराबर बाटते देखी मुहब्बत भी समानों सी
बड़ा-छोटा करे माँ प्यार का हिस्सा नहीं देखा
**
डपटता भी अगर है तो सुधर जा की नसीहत से
खुदा की आँख में मैंने कभी गुस्सा नहीं देखा
**
ये जो जम्हूरियत कहते लुटेरों का तमाशा अब
यहाँ मालिक कहाता जो भला उसका नहीं देखा
**
सुना है कल सियासतदाँ चले आए थे बस्ती में
‘मुसाफिर’ आज बस्ती में कोई बच्चा नहीं देखा
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सुना है कल सियासतदाँ चले आए थे बस्ती में
‘मुसाफिर’ आज बस्ती में कोई बच्चा नहीं देखा
kya kahane....
डपटता भी अगर है तो सुधर जा की नसीहत से
खुदा की आँख में मैंने कभी गुस्सा नहीं देखा
वाह - वाह - वाह..... वैसे तो पूरी गजल ही अच्छी है पर ये शेर तो कुछ खास हो गया !!!!
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
डपटता भी अगर है तो सुधर जा की नसीहत से
खुदा की आँख में मैंने कभी गुस्सा नहीं देखा
**
ये जो जम्हूरियत कहते लुटेरों का तमाशा अब
यहाँ मालिक कहाता जो भला उसका नहीं देखा ----- बहुत खूब भाई , दोनो शेर खूब पसन्द आये , आपको बहुत बधाइयाँ ॥
डपटता भी अगर है तो सुधर जा की नसीहत से
खुदा की आँख में मैंने कभी गुस्सा नहीं देखा--बहुत बढ़िया शेर ..बहुत खूब
शानदार ग़ज़ल हुई आ० लक्ष्मण धामी जी बधाई आपको
सियासत पूछ मत तुझमें पतन क्या-क्या नहीं देखा
बहुत खुदगर्ज देखे हैं मगर तुझ सा नहीं देखा
वाह , क्या कहने ! बहुत बधाइयाँ ।
'तुझ सा, हिस्सा, गुस्सा ताे ज्यादा नहीं फिर भी
बराबर बाटते देखी मुहब्बत भी "समानों सी"
अादरणीय laxman dhami जी, क्या यहाँ पर 'सामानाें सी' था ?
बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय लक्ष्मण जी
सियासत पूछ मत तुझमें पतन क्या-क्या नहीं देखा
बहुत खुदगर्ज देखे हैं मगर तुझ सा नहीं देखा.........बहुत खूब, यह विवशता मन को दुखी कर देती है
दिली बधाई स्वीकार करें
भाई गजेन्द्र जी गजल कि प्रशंसा के लिए दिली धन्यवाद स्वीकारें .
भाई श्यामनारायण जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय कुंती बहन आप जैसे वरिष्ठ रचनाकारों से हम जैसे नए लोगों को दाद मिलना अहम् है .यही हमें लेखन के लिए प्रेरित करता है . प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
अच्छे अशआर हुए हैं आदरणीय लक्ष्मण जी। मतले सहित सभी शेरों में अच्छी कहन है।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online