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बेटियाँ होंगी न जब /गजल/कल्पना रामानी

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गर्भ में ही निज सुता की, काटकर तुम नाल माँ!

दुग्ध-भीगा शुभ्र आँचल, मत करो यूँ लाल माँ!

 

तुम दया, ममता की देवी, तुम दुआ संतान की,

जन्म दो जननी! न बनना, ढोंगियों की ढाल माँ!

 

मैं तो हूँ बुलबुल तुम्हारे, प्रेम के ही बाग की,

चाहती हूँ एक छोटी सी सुरक्षित डाल माँ!

 

पुत्र की चाहत में तुम अपमान निज करती हो क्यों?

धारिणी, जागो! समझ लो भेड़ियों की चाल माँ!

 

सिर उठाएँ जो असुर, उनको सिखाना वो सबक,

भूल जाएँ कंस कातिल, आसुरी सुर ताल माँ!

 

तुम सबल हो, आज यह साबित करो नव-शक्ति बन,

कर न पाएँ कापुरुष, ज्यों मेरा बाँका बाल माँ!

 

ठान लेना जीतनी है, जंग ये हर हाल में,         

खंग बनकर काट देना, हार का हर जाल माँ!

 

तान चलना माथ, नन्हाँ हाथ मेरा थामकर,

दर्प से दमका करे ज्यों, भारती का भाल माँ!

 

“कल्पना” अंजाम सोचो, बेटियाँ होंगी न जब,

रूप कितना सृष्टि का, हो जाएगा विकराल माँ!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 17, 2014 at 11:40am

सुंदर मर्मस्पर्शी गजल पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीया कल्पना जी, यह एक  विडम्बना है की माँ भी अपने घर या वंश  के विकास के लिए पुत्र के प्रति अति मोह लिए होती है | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:32am

आदरणीय कल्पना दीदी , बेहद सशक्त ग़ज़ल पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं l

Comment by Shyam Narain Verma on April 16, 2014 at 5:29pm
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई .................
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 16, 2014 at 4:57pm

आदरणीया कल्पनाजी

अपने ही परिवार की भावी कन्या की भ्रूण हत्या कर जल्लाद बनने वालों को चेतावनी के साथ सबक सिखाया है । बहुत अच्छी लगी , हार्दिक बधाई  

Comment by इमरान खान on April 16, 2014 at 3:33pm
वाह वाह वाह, बहुत उम्दा, बेमिसाल और जज़्बाती गज़ल कही है कल्पना जी। आपको ढेरों शुभकामनायें।
Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 16, 2014 at 1:10pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्क्या बात है आ0।


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Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 11:53am

बहुत उम्दा ,बहुत सशक्त ,बेमिसाल हृदय स्पर्शी ,संग्रहणीय,दिल पर अमिट छाप छोडती हुई  प्रस्तुति आ० कल्पना रमानी जी,जितनी तारीफ़ करूँ कम होगी आज तक आपकी सभी रचनाओं में इसको पहला नंबर दूँगी.शत-शत नमन आपकी लेखनी को|   

Comment by वेदिका on April 16, 2014 at 11:44am
बेहद सशक्त ग़ज़ल पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित है। दमदार शेअर हुए है।
मैं तो हूँ बुलबुल तुम्हारे, प्रेम के ही बाग की,
चाहती हूँ एक छोटी सी सुरक्षित डाल माँ!// इस शेर की मासूमियत दिल को छू गयी।
सादर

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