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गर्भ में ही निज सुता की, काटकर तुम नाल माँ!
दुग्ध-भीगा शुभ्र आँचल, मत करो यूँ लाल माँ!
तुम दया, ममता की देवी, तुम दुआ संतान की,
जन्म दो जननी! न बनना, ढोंगियों की ढाल माँ!
मैं तो हूँ बुलबुल तुम्हारे, प्रेम के ही बाग की,
चाहती हूँ एक छोटी सी सुरक्षित डाल माँ!
पुत्र की चाहत में तुम अपमान निज करती हो क्यों?
धारिणी, जागो! समझ लो भेड़ियों की चाल माँ!
सिर उठाएँ जो असुर, उनको सिखाना वो सबक,
भूल जाएँ कंस कातिल, आसुरी सुर ताल माँ!
तुम सबल हो, आज यह साबित करो नव-शक्ति बन,
कर न पाएँ कापुरुष, ज्यों मेरा बाँका बाल माँ!
ठान लेना जीतनी है, जंग ये हर हाल में,
खंग बनकर काट देना, हार का हर जाल माँ!
तान चलना माथ, नन्हाँ हाथ मेरा थामकर,
दर्प से दमका करे ज्यों, भारती का भाल माँ!
“कल्पना” अंजाम सोचो, बेटियाँ होंगी न जब,
रूप कितना सृष्टि का, हो जाएगा विकराल माँ!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुंदर मर्मस्पर्शी गजल पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीया कल्पना जी, यह एक विडम्बना है की माँ भी अपने घर या वंश के विकास के लिए पुत्र के प्रति अति मोह लिए होती है |
आदरणीय कल्पना दीदी , बेहद सशक्त ग़ज़ल पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं l
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई ................. |
आदरणीया कल्पनाजी
अपने ही परिवार की भावी कन्या की भ्रूण हत्या कर जल्लाद बनने वालों को चेतावनी के साथ सबक सिखाया है । बहुत अच्छी लगी , हार्दिक बधाई
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्क्या बात है आ0।
बहुत उम्दा ,बहुत सशक्त ,बेमिसाल हृदय स्पर्शी ,संग्रहणीय,दिल पर अमिट छाप छोडती हुई प्रस्तुति आ० कल्पना रमानी जी,जितनी तारीफ़ करूँ कम होगी आज तक आपकी सभी रचनाओं में इसको पहला नंबर दूँगी.शत-शत नमन आपकी लेखनी को|
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