2122 2122 1222
क्या शिकायत करू मैं इस जमानें से
फायदा क्या है किसी को बतानें से
अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम
आ सकेगें हम न आँसू बहानें से
बदनसीबी साथ मेरे उम्र भर थी
सो रहा हूँ चोट खा कर जमानें से
यार मेरे तुम बहाओ न अश्को को
फायदा क्या अब यहाँ दिल जलानें से
रूठ कर हम से चले ही गये वो जब
साथ ना अब तो मिले कुछ बतानें से
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी गहमर गाजीपुर
Comment
उत्साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय laxman dhami जी
उत्साहवर्धन के लिये हम आपके आभारी है आदरणीय अनुराग सिहं जी
आदरणीय अखंड भाई , गज़ल बहुत खूब सूरत कही है , बधाइयाँ !! उम्र भर थी - 2122 लेना चाहिये था , आपने 1222 ले लिये है , देख लीजियेगा !!
सुन्दर और सराहनीय प्रयास आदरणीय
सादर
आदरणीय भाई गहमरी जी , सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ,
अब मजारो की तरफ यूँ न देखो तुम
आ सकेगें हम न आँसू बहानें से
क्या बात है आ. Akhand Gahmari पढ़कर बड़ा आनंद आ गया, कृपया बधाई स्वीकार करें...
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