मनमोहन छंद : लक्षण: जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, यति ८-६, चरणांत लघु लघु लघु (नगण) होता है.
अब तक थी जो ,सुलभ डगर
आगे साथी,कठिन सफ़र
सँभल-सँभल कर ,रखें कदम
साथ चलेंगे ,जब- जब हम
सब काँटों को ,चुन-चुन कर
फूल बिछाएँ,पग-पग पर
आजा चुन लें ,राह नवल
जहाँ प्यार के ,खिलें कँवल
फूल हँसेंगे ,खिल-खिलकर
कष्ट सहेंगे, मिलजुलकर
पथ का होगा, सही चयन
सही दिशा में, रहें नयन
न्यारी दुनिया ,के पथ पर
नूतन सपनो ,के रथ पर
आओ साथी ,चलें उधर
अम्बर धरती ,मिले जिधर
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० गिरिराज जी, आपको छंद पसंद आया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका.
आदरणीया राजेश जी , एक नया छंद ( मेरे लिये ) पढ कर बहुत अच्छा लगा , आपको बधाइयाँ !!
आ० लक्ष्मण धामी भाई जी, आपका दिल से आभार.आपको छंद पसंद आया मेरा लिखना सफल हुआ.
प्रिय गीतिका जी आपका ह्रदय तल से आभार सस्नेह
एक अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश बहन .
जितेन्द्र गीत जी, हार्दिक आभार आपका.आपकी प्रतिक्रिया से मन हर्षित भी हुआ और छंद के प्रति आश्वस्त भी .
आ० कुंती जी आपको छंद पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ
सुंदर सकारात्मक मनमोहन छंद, मन को छू गए आदरणीया राजेश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
बहुत सुंदर छंद है......
सब काँटों को ,चुन-चुन कर
फूल बिछाएँ,पग-पग पर
आजा चुन लें ,राह नवल
जहाँ प्यार के ,खिलें कँवल .....हार्दिक बधाई राजेश कुमारी जी.
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