आदमी
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ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं
बौने लोग
विकृति और स्वभाव
एक दूजे के
पर्यायवाची
चाहरदीवारी के मध्य
शून्य
वर्जनाओं के टूटने का
उदघोष
खामोशी से सुनते हुए
ध्वनि प्रतिध्वनि
संज्ञा शून्य
आहत भावनाये
रिसता खून
अँगुलियों से चाटते हुए
शायद
ये भी नमकीन है
अपनों के लहू जैसा
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
मौलिक /अप्रकाशित
२०.०४.२०१४
Comment
आ ० प्रदीप सर, सादर नमस्कार !
इतनी सटीक और यथार्थवादी रचना हेतु बधाई !
आदरणीय प्रदीप सर , नमस्कार
बहुत ख़ुशी हुयी देख आपकी रचना को महीने की सर्वश्रेठ रचना के सम्मान से नवाज़ा गया है .. बहुत -२ हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ...सादर
बहुत सुंदर रचना आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी !!
बहुत ही सुन्दर रचना .. बधाई आप को | सादर
आदरणीय सिंह साहब जी
सादर
आप ही तों हैं जो सब जानते हैं
कैसा भी हो समय मेरा पहचानते हैं
आपका भी अभिनंदन
स्नेही विन्दु जी
सादर
बढ़िया बनाने का प्रयास है.
ये आप बीती है , शब्द कभी रहे नही मेरे पास .
आपने महसूस किया इतना ही काफी है .
आभार
सत्य को चित्रित करती रचना आदरणीय कुशवाहा जी! सादर अभिनन्दन!
आदरणीय कुशवाहा सर:
कविता अच्छी बनी है...सोचने को प्रेरित करती है।
आपको हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति के लिए।
सादर
आदरणीया कुंती दी जी
aapkआ स्नेह है सादर
बहुत सुंदर रचना है....हार्दिक बधाई. भाई साहब.
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