आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों घनाक्षरी पर यह मेरा प्रथम प्रयास है कृपया त्रुटियों से अवगत कराएँ.
मनहरण - घनाक्षरी
क्रूरता कठोरता अधर्म द्वेष क्रोध लोभ
निंदनीय कृत्य पापियों का प्रादुर्भाव है,
दूषित विचार बुद्धि और हीन भावना है,
आदर सम्मान न ह्रदय में प्रेम भाव है,
नम्रता सहृदयता विवेक न समाज में,
सभ्यता कगार पर धर्मं का आभाव है,
बदली है वेषभूषा बदला है रंगढंग
बदला हुआ बड़ा मनुष्य का स्वाभाव है.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार अनुराग भाई जी
बहुत सुंदर भाव, बधाई आदरणीय अरुण अनंत जी
खूबसूरत घनाक्षरी , बधाई हो प्रिय अरुण ।
आदरनीय अरुण भाई , छंद पढ के बहुत अच्छा लगा , शिल्प से अनजान हूँ , आपको बहुत बधाइयाँ !!
सुन्दर प्रयास ! प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
अरुण हार्दिक बधाई इस प्रथम प्रयास पर
आखिरी पंक्ति को ऐसे करके देखिये ...
बदला हुआ बड़ा ही मानव स्वभाव है ..केवल सुझाव है बाकी जैसे आपको उचित लगे
वाह बहुत उम्दा घनाक्षरी हुई है आदरणीय | बहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने |
सादर
आदरणीया माँ जी घनाक्षरी पर किया प्रथम प्रयास आपको पसंद आया प्रयास सफल हुआ ओह्ह ध्यान नहीं गया इस ओर टाइपिंग में गलती हो गई सुधार कर लेता हूँ हार्दिक आभार आपका आपने अंतिम पंक्ति में जो सुझाव दिया है वो पंक्ति गुनगुनाने पर थोड़ी अटक रही है या शायद मुझसे कोई गलती हो रही है. क्षमा चाहता हूँ
प्रिय अरुन बहुत सुन्दर प्रयास है बेहतरीन घनाक्षरी हुई ह्रदय से बधाईयाँ ----वेशभूषा कर लीजिये--- अंतिम पंक्ति इस प्रकार हो तो प्रवाह देखिये --बदला हुआ मानव का बड़ा स्वभाव है
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