1)
सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश
नोच-नोच कर लोभ ने, बदल दिया परिवेश।
बदल दिया परिवेश, खलों ने खुलकर लूटा।
भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा।
हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की,
ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की।
2)
पावन धरती देश की, कल तक थी बेपीर।
कदम कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।
पग पग पर था नीर, क्षीर की बहतीं नदियाँ,
निर्झर थे गतिमान, रही हैं साक्षी सदियाँ।
सोचें इतनी बात, आज क्यों सूखा सावन?
झेल रही क्यों पीर, देश की धरती पावन।
3)
कोयल सुर में कूकती, छेड़ मधुरतम तान।
कूक कूक कहती यही, मेरा देश महान।
मेरा देश महान, सुनाती है जन जन को,
रोक वनों का नाश, कीजिये रक्षित हमको।
कहनी इतनी बात, अगर वन होंगे ओझल।
कैसे मीठी तान, सुनाएगी फिर कोयल।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपका सादर धन्यवाद आदरणीय सत्यनारायन जी
इस शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया कल्पना रामानी जी
आदरणीय सौरभ जी, आपकी उपस्थिति से रचना का मान बढ़ जाता है। आपका सादर धन्यवाद
आदरणीया प्राची जी, आपका कहना बिलकुल सही है, कभी कभी ध्यान चूक जाता है। इंगित करने के लिए बहुत धन्यवाद आपका, सही शब्द मिलते ही संशोधित कर दूँगी।
सार्थक काव्य रचना के लिए बधाई आदरणीया.
सादर
आदरणीया कल्पना जी
भारत देश जो कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, किस तरह लोभियों नें इसे लूट डाला ....साथ ही पावन नदियाँ , दूध दही की सम्पन्नता, आज सब लुप्त से हो गए हैं, कोयल के माध्यम से भी आपने वन संरक्षण की बहुत ख़ूबसूरत बात कही है
इस सार्थक प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये
देश और ऐश की तुकांतता पर आपका ध्यान अवश्य ही चाहूंगी \
सादर
आ॰ गिरिराज जी, आशुतोष जी, अखिलेश जी, आशीष जी,आदरणीया राजेश जी, कुंती जी, प्रिय अन्नपूर्णाजी, कल्पना जी,आप सबका प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार
बहुत सुंदर कुण्डलिया छंद बधाई आपको आ0 कल्पना दी ।
बहुत सुंदर एवं मधुर रचना. कलपनाजी. हार्दिक बधाई.
आदरणीया कलपना जी , तीनो कुंडलिया बहुत अच्छी रचीं है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
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