कुडंली छंद
छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु गुरु (यगण, मगण), यति ११-१०।
अँखियों से झर रहे,बूँद-बूँद मोती,
राधा पग-पग फिरे,विरह बीज बोती|
सोच रही काश मैं ,कान्हा सँग होती,
चूम-चूम बाँसुरी,अँसुवन से धोती|
मथुरा पँहुचे सखी ,भूले कन्हाई,
वृन्दावन नम हुआ ,पसरी तन्हाई|
मुरझाई देखता ,बगिया का माली,
तक-तक राह जमुना ,भई बहुत काली|
खग,मृग, अम्बर, धरा,हँसना सब भूलें,
जूही ,टेसू, कमल ,महुआ ना फूलें|
पूछ रही डालियाँ ,कौन संग झूलें,
निष्ठुर, निष्पंद हिय, उठती हैं हूलें|
कोयलिया डार पर ,कुहुक-कुहुक रोई,
बीतें जग-जग दिवस ,रतियाँ न सोई|
बिरही पगडंडियाँ , शूल- शूल बोई,
संदेसा भेज दे ,कान्हा को कोई|
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सत्यनारायण सिंह जी आपको ये छंद रुचिकर लगा मेरा प्रयास सफल रहा हृदय तल से आभार आपका .
एक नए छन्द का परिचय इस प्रस्तुति के माध्यम से कराने हेतु सादर धन्यवाद एवं इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. राजेश कुमारी जी
Vijay nikore ji bahut bahut shukriya ..hardik aabhaar aapka.
इस बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीया।
आ0 माहेश्वरी कानेरी जी , आपको कुदन्लि छंद पसंद आया ,दिल से आभार आपका |मेरा लिखना सार्थक हुआ. इस उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
बहुत सुंदर.. कुंडलियाँ छंद रचा है आदरणीय राजेश जी आप ने .. बहुत -२ बधाई आपको सादर
आ० मीना पाठक जी इस उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु दिल से बहुत सा आभार.
आनंद आ गया आदरणीया राजेश जी .... हृदय से बधाई स्वीकारें | सादर
प्रिय महिमा श्री जी ,आपको ये कुडंलियाँ छंद गीत रुचिकर लगा मेरा लिखना सार्थक हुआ ,ह्रदय से आभारी हूँ.
अतिसुंदर कुंडलियाँ छंद रचा आदरणीय राजेश जी .. बहुत -२ बधाई आपको सादर
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