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ऋतु गर्मी की आई

ऋतु गर्मी की आई

छन्न पकैया छन्न पकैया, ऋतु गर्मी की आई|

आँधी धूल उडाते चलती, बहे गर्म लू भाई|१|

छन्न पकैया छन्न पकैया, नीम सिरिष हैं फूले |

हवा सुगंध बिखेरे उनकी, खुशबू से मन झूले|२|

छन्न पकैया छन्न पकैया,जुगनू चमचम चमके|

सूखी नदियाँ रेत तलैया, पानी जैसे झलके|३|

छन्न पकैया छन्न पकैया, आँखें धूप में चौंधे|

लाल पुष्प से पुष्पित सज्जित, गुलमोहर के पौधे|४|

छन्न पकैया छन्न पकैया, खायें मठ्ठा रोटी|

गर्मी के दिन लम्बे होते, रातें होती छोटी|५|

छन्न पकैया छन्न पकैया, चलते कूलर पंखे|

 बिजली की जब हुई कटौती, अब काहे को झंखे|६|

छन्न पकैया छन्न पकैया, ककड़ी खीरे भायें|

लीची बेल फालसा खायें, गर्मी दूर भगायें|७|

छन्न पकैया छन्न पकैया, गर्मी के दिन आये|

शरबत लस्सी कुल्फी ठंडा, सबका मन ललचाये|८|

छन्न पकैया छन्न पकैया,गर्मी लगे उबाऊ|

जगह जगह पर दिखते है अब, शीतल जल के प्याऊ|९|

छन्न पकैया छन्न पकैया,गर्मी खुशियाँ लाती|

बंद हो गए विद्यालय अब, नहीं पढ़ाई भाती|१०| 

छन्न पकैया छन्न पकैया, रटा रटाया जुमला|

गर्मी खूब सताए अब तो, चलो मनाली शिमला|११|

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 7:38pm

आदरणीय सत्य नारायण भाई , लाजवाब गरम गरम गर्मी पर छ्न्न पकैया छंद की रचना की है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 4:47pm

ऋतु गर्मी की आई, क्या खूब लिखे हो भाई

छंद सार अति सुंदर है, ले लो मेरी बधाई 

Comment by Satyanarayan Singh on May 3, 2014 at 12:40pm
आ. शिज्जू जी सादर आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 12:00pm

छन्न पकैया छन्न पकैया क्या मंजर है खींचा
गर्मी की इन फसलों को यों भावों से है सींचा

आदरणीय सत्यनारायण जी गर्मी को ध्यान में रखते हुये अच्छी रचना रची है बहुत बहुत बधाई आपको।

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