तुम आये
मै खुश था
बहुत खुश /
मुझे घेर लेते थे
या कहो
कोशिश करते थे
घेर लेने की /
कुछ अहसास
उल्लास ,दर्प , ईर्ष्या ,द्धेष
सम्मान / कुछ मखमली से
कुछ अनजाने से भी
और मैं उड़ता था / परी कथाओं के
नायक की तरह
पंखों वाले सफ़ेद घोड़े पर
खुशगवार मौसम में
चमकीली धूप में
नीले आसमान में /
सर-सर चलती हवाएं से आगे
और आगे ।
और फिर
जैसा कि सुनता आया था सबसे/
कि ऐसा ही होता है /
तुम चले गये /मानो मुझे एक अंधे कूएँ मैं
फेंक दिया हो ।
मौसम बदल गये /
बदली भी छाती है
कभी कभी
आसमान पर /
और मैं जमीन पर हूँ |
लेकिन मैं खुश हूँ ,
तुम ना आते तो
क्या मैं
वो सारे अहसास
कभी महसूस कर पाता ।
सारे जहां की
बादशाहत पा कर
कैसा लगता है
यह मैंने तुम्हे पा कर जाना /
अच्छा ,,,,अलविदा। ।
नहीं । अलविदा नहीं
शायद तुम लौट आओ ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , शुक्रिया _ आपने रचना को पसंद किया । उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद ।
बहुत बहुत , शुक्रिया आदरणीय नीर साहेब, केवल प्रसाद जी , अरुण जी । क्षमा प्रार्थी हूँ की जवाब देने में विलम्ब हुआ ।आशा है स्नेह बनाये रखेंगे
बहुत बहुत , धन्यवाद आदरणीय शिज्जु शकूर जी ,कुन्ती मुख़र्जी एवं नादिर खान साहेब । कुछ व्यस्तताओं के कारण जवाब देने में विलम्ब हुआ ।आशा है स्नेह बनाये रखेंगे
बहुत खूब ! .. कुछ अनुभूतियाँ उम्रदराज़ नहीं होतीं. उनके अंदाज़ निहायत अपने-अपने-से होते हैं. बधाई ..
सुकोमल भावों की मखमली प्रस्तुति.................बधाई.................
हम सदैव ही दूसरों के माध्यम से ही कुछ पा सकते हैं। एकाकी जीवन/अनुभव तो मात्र अहं और हीनता से संलिप्त होता है। बहुत सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई स्वीकार करेंं। सादर,
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..
मन से निकली भावनाएँ जो शब्दों में ढल गयी.अति सुंदर.आपको बहुत बहुत बधाई.
कोमल भावनायें, सुंदर एहसास, हार्दिक शुभकामनायें ..आदरणीय अ.भटनागर जी ...
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