मैं सोचता था
कि वह खो गया है कहीं
मगर
गुनगुनी धूप से धुली
उस सुबह
एक मोड़ पर
वह अचानक मिला
मैं जानता था
कि वह रुकेगा
वह रुक गया
मैं
यह भी जानता था
कि वह
मुझसे बातेँ करेगा
और वह
मुझ से बातेँ करने लगा
और तभी मैंने चाहा कि
मैं
उन अचानक मिले
कुछ पलों में
वे सारे स्वप्न साकार कर लूं
जो मैंने संजोये थे
मगर
उसके लिए ये पल तो
सिर्फ
कुछ पल थे ,
और वह चला गया ,
फिर मिलने की आस दिला कर
और मैं
फिर भटकने लगा ,
हर मोड़ पर रुक कर
कुछ देर
उसका इंतज़ार करता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'
Comment
bahut bahut dhanyawad aadarniya Shijju Shakur ji.....
वाह अरविंद भटनागर जी अर्से बाद आपको फिर देखकर अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
रचना के साथ साथ प्रतिक्रियाएं पड़कर आनंद आ गया आ० अरविन्द भाई . बहुत बहुत बधाई .
accha hai ,pr vhi baat,yaadon ko kavy rupon me dhalon pr naam lekr uski zindgi me bhuchal mt lao
हा हा हा ... क्या खूब कहा डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, तान्याएं फिर नहीं मिलती दोस्त i जिन्दगी में यादे रह जाती हैं i ईश्वर आपको शांति दे i
भाई अरविन्द जी , आदरणीय डॉ गोपाल सर की बात पर जरुर गौर कीजियेगा. समझिये आपको गुरुदेव का आशीर्वाद और जीवन अनुभव का परम ज्ञान मिल गया है. बहरहाल इस स्वानुभूति से लबरेज सुमधुर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
हा..हा...हा..सर यही बात मैं भी सोच रहा था , पर अरविन्द जी लगता है अभी नए हैं , पर प्रयास ठीक है
यह तान्या कौन है भाई ?आपकी कविता ने नहीं पर आपके दिल में यह नाम अंकित है i पर तान्याएं फिर नहीं मिलती दोस्त i जिन्दगी में यादे रह जाती हैं i ईश्वर आपको शांति दे i
आदरणीय अरविन्द भटनागर जी ,बढ़िया प्रयास ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !
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