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विश्वासों की बढती डोर- लक्ष्मण लडीवाला

जयकारी/चोपई छंद (१५ मात्राओं के इस छंद में चरणान्त गुरु लघु से)

राष्ट्र सृजन में जिनका योग, उनको कहे पुरोधा लोग

जनता का मिलता सहयोग, खुशहाली का होता योग |

कानूनन जन हित का भान, सफल प्रशासक उसको मान

योग्य प्रशासक का सम्मान, तभी देश का हो उत्थान ||

 

जड़ चेतन का जिसको भान, उसमे ही आध्यात्मिक ज्ञान

परम पिता ने डाले प्राण, इसके मिलते बहुत प्रमाण |

जिसमे हो सेवा का भाव, मन में वह रखता सद्भाव

जिसमे भी जिज्ञासा जान, गुरुवर का वह करता मान ||

 

नदी के जब मिले दो छोर, विश्वासों की बढती डोर 

प्राची में जब होती भोर, मन की बगिया भरे हिलोर |

श्रमिक नीव का पत्थर मान, तभी देश को हो उत्थान

सैनिक का जब हो सम्मान. देश सुरक्षित तब ही मान ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 12:54pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई

एक देश भक्त की तरह अपनी कलम से सुंदर चौपई लिखी , हार्दिक बधाई 

नदी के जब मिले दो छोर / /  मिले नदी के जब दो छोर ......  प्रवाह में और गति आ जाती है  

सादर्


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 3, 2014 at 11:49am

आदरणीय लक्ष्मण सर इन चौपाइयों के लिये हार्दिक बधाई

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