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ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2014 at 3:05pm

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी
मदद के हांथ नहीं एक भी उठे थे मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी
बहुत सुन्दर ...समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है
भ्रमर ५

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:08am

बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल है संजू जी। हर शे’र शानदार है। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by sanju shabdita on May 26, 2014 at 10:02am

आदरनिया वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on May 26, 2014 at 10:01am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Shyam Narain Verma जी

Comment by sanju shabdita on May 26, 2014 at 10:00am
Comment by vandana on May 25, 2014 at 6:46am

वाह बहुत खूब ....बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीया 

Comment by Shyam Narain Verma on May 24, 2014 at 4:36pm
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 23, 2014 at 11:14pm

बेहतरीन गजल हुई आदरणीया संजू जी

मदद के हांथ नहीं एक भी उठे थे मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी..........वाह! बहुत खूब, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:58pm

आदरणीय gumnaam pithoragarh जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:57pm

आदरणीय आसिफ अमान जी मतला और पहला शेर मुझे भी बहुत प्रिय हैं इस ग़ज़ल में आपकी सहृदयता के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

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