1.
शेल्फ़ किताबों के लिए हो सकती है
किताबें शेल्फ़ के लिए नहीं होतीं
शेल्फ़ में किताबों को रख छोड़ना
किताबों की सत्ता का अपमान है.
2.
कुछ पृष्ठों के कोने वो मोड़ देता है
न भी पलटे जायें बार-बार
उन पृष्ठों को खास होने का अहसास बना रहता है..
"शुक्रिया दोस्त !.."
3.
चाहती है किताब / पृष्ठ प्रति पृष्ठ
शब्द-शब्द जीमती दृष्टि
पलटती उंगलियों की छुअन
बूझते चले जाने की आत्मीय स्वीकृति.
हर किताब चाहती है
पढ़ा जाना
अंतर्निहित तरंगों का महसूसा जाना..
रोम-रोम.. शब्द-शब्द.. बूझा जाना.
4.
किताबों के अक्षर-शब्द..
किताबों में पड़ी पँखुड़ियाँ..
परस्पर निर्लिप्त !
नियमित संज्ञा / और
विशिष्ट परम्पराओं के बावज़ूद
किताबें चुपचुप कितना कुछ जीती हैं !
***************
--सौरभ
***************
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
सादर धन्यवाद, आदरणीया मीनाजी.
नादिर भाई, इस प्रस्तुति में किताबों से जुड़े कुछ आयामों को साझा करने की कोशिश तो हुई ही है, ये वस्तुतः बिम्ब की तरह ही प्रयुक्त हुई हैं, कई अन्य संज्ञाओं को इंगित करती.
आपने इस प्रस्तुति पर समय दिया, इसके लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई
अरसे बाद आपको मंच पर देखा, अच्छा लगा, गीतिका वेदिकाजी.
किताबों के बिम्ब पर कही गयी बातें आपको अच्छी लगीं, इसके लिए धन्यवाद.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ जी,
//कुछ पृष्ठों के कोने वो मोड़ देता है
न भी पलटे जायें बार-बार
उन पृष्ठों को खास होने का अहसास बना रहता है..
"शुक्रिया दोस्त !.."// सुंदर...अति सुंदर.
लेकिन पहली क्षणिका में आप लिखते हैं //सेल्फ़ किताबों के लिए हो सकती है.....// मुझे लगता है आप शेल्फ़ (shelf) कहना चाहते हैं सेल्फ़ (self) नहीं.
सादर
नमन आप की लेखनी को | सादर
आदरणीय सौरभ सर किताबों के प्रति आपका प्रेम, क्षणिकाओं के माध्यम से प्रज्ज्वलित हो रहा है | सार्थक क्षणिकाओं के लिए बधाई...........
हर किताब चाहती है
पढ़ाजाना// बहुत आत्मीयता से जानी आपने पुस्तक के मन की इच्छा।
// 2.
कुछ पृष्ठों के कोने वो मोड़ देता है
न भी पलटे जायें बार-बार
उन पृष्ठों को खास होने का अहसास बना रहता है..
"शुक्रिया दोस्त !.."
अनकहे को कहा किया जाना, आपने जता दिया!
आपकी यह रचना उन के लिए बहुमूल्य है जिन्होंने पुस्तकों से प्रेम किया है, जिनका जीवन पुस्तकों के सान्निध्य में बीता!
हार्दिक साधुवाद आ0 सौरभ जी!
जी, आदरणीय जवाहर भाईजी. सही कहा आपने.
इस प्रस्तुति पर आप द्वारा सार्थक समय दिया जाना मेरे लिए भी अतिशय उत्साह का कारण बना है.
हार्दिक धन्यवाद
शुभ-शुभ
भाई शिज्जूजी, आपकी सदाशयता के हम शुक्रगुजार हैं.
रचनाएँ पसंद आयीं, मेरा कहना सार्थक हुआ.
दिल से धन्यवाद भाईजी.
आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय सर !
चाहती है किताब / पृष्ठ प्रति पृष्ठ
शब्द-शब्द जीमती दृष्टि
पलटती उंगलियों की छुअन
बूझते चले जाने की आत्मीय स्वीकृति.
हर किताब चाहती है
पढ़ा जाना
अंतर्निहित तरंगों का महसूसा जाना..
रोम-रोम.. शब्द-शब्द.. बूझा जाना.
बस कुछ कहने की जरूरत नहीं, समझने की जरूरत है ....सादर
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