जब से "छपास" का
रोग लगा है.
लिखना रुकता ही नहीं ,
कविता अतुकांत,
कहानी अनगढ़ी ,
बिना यात्रा किये
यात्रा वृतांत,
बिना मिले
विरह वर्णन,
बिना प्यार किये,
रोमांच का सच.
वृद्ध हाथों में
क्रांति की मशाल,
बिना सच जाने
चेतावनी!
क्या मजाल,
कि आप कुछ बोल दें.
जरा सा सच का पर्दा खोल दें
चैनलों पर रात-दिन देखिए,
पूरे देश में,
"नपुंसक बवाल".
डॉ. विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० सौरभ पाण्डेय जी,
रचना ने आपको रोमांचित किया और आपने सराहा .
बहुत- बहुत आभार सह अभिनन्दन.
क्या बात .. क्या बात .. क्या बात !!
बधाई आदरणीय विजय प्रकाशजी..
बहुत -बहुत आभार लक्ष्मण प्रसाद जी.स्नेहबनाए रखें.
छपास के रूप में यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है श्री विजय प्रकाश जी | बधाई
० प्राची सिंह जी, आपके प्रोत्साहन का हमेशा इंतेजार रहता है.
आभारी हूँ
छपास का रोग... या प्रस्तुतियों पर वाहवाही की बेतुक लालसा.... लेखन के पीछे के मकसद को असंयत करती या दरकिनार करती है
आपका सदिश चिंतन सुन्दरता से प्रस्तुत हुआ है.
तहे दिल से बधाई स्वीकारिये इस प्रस्तुति पर आदरणीय विजय प्रकाश शर्मा जी
सिर्फ एक आध जगह टंकण त्रुटि रह गयी है..उसे अवश्य ही सही कर लें
आपका बहुत आभार जवाहर लाल सिंह जी.
आपको रचना पसंद आई,आपका बहुत आभार डॉ. विजय शंकर जी.
सोलह आने बात सही है। ।बोले तो झकाश, प्रकाश, छपाश। ।देखें तो आकाश!
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