लग कर छाती से हुए, बडे और बलवान
निज जननी के सामने, ठाडे सीना तान
ठाडे सीना तान , लाज आये ना उनको
बेशर्मी ली लाद , न भाये अपने मन को
आहत है माँ खूब, दुखी रातों में जगकर
चूसे मां का खून , पले जो छाती लगकर ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरन जी ..आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..आदरणीय जवाहरलाल जी आप सभी की रचना पर उपस्थिति और सराहना हेतु हार्दिक आभार ..आप सब को पढ़ पढ़ कर ही खुछ सीख पा रही हूँ | सादर
आदरणीया मीणा पाठक जी, आज के सन्दर्भ में उपयुक्त और सार्थक कुण्डलियाँ!
वाआअह प्रथम प्रयास और वो भी इतना सुंदर … हार्दिक बधाई आदरणीय मीना जी
आदरणीय गोपाल नारायण जी ..आदरणीया राजेश कुमारी जी , त्रुटियों की तरफ इंगित करने हेतु सादर आभार | आप सब के मार्गदर्शन में सीखने का प्रयास कर रही हूँ | सादर
ठाडे के स्थान पर यदि अकड़ें करें तो भाव और भी स्पष्ट होगा ,वैसे आपका पहला प्रयास बहुत बढ़िया है बधाई आपको मीना जी
मीना जी
प्रथम प्रयास i क्या कहने i संगठन दुरुस्त i ठाढ़े शब्द का प्रयोग कुछ अखरता है i यहाँ पर 'लेते सीना तान ' शायद अधिक संगत होता i फिलहाल आपको सुन्दर रचना की बधाई i
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