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जाने कहाँ गईं ?

**************
नींदों से सपनों की फसलें
जाने कहाँ  गईं ?
==
मलमल के बिस्तर से तन को
हमने जोड़ रखा
उसके ऊपर मन-चादर को
कस के ओढ़ रखा
रातों की महफ़िल से गज़लें
जाने कहाँ गईं ?
==
बार-बार अँखियों के मैंने
परदे बंद किये
सपनों वाली नींद बुलाने
जप हरचंद किये
नियति -नटी सपनों के खत ले
जाने कहाँ गईं ?
==
बेटी कहती पापाजी तुम
नींद में हँसते हो
कसम आपकी मै बतलाऊं
खूब ही जंचते  हो
नींद जहाँ दो पल को हंस ले
जाने कहाँ  गईं ?
==
नींदों से सपनों की फसलें
जाने कहाँ  गईं ?
==================(मौलिक/अप्रकाशित )
-- अविनाश बागडे

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Comment by AVINASH S BAGDE on July 11, 2014 at 7:18pm

आदरणीय सौरभ जी आप को मेरा ये प्रयास भा गया ये मेरी खुशकिस्मती है /आभार आदरणीय 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 11, 2014 at 7:16pm

Dr.Prachi Singh mam..मेरे इस नव गीत ने आप को ऐसा सार्थक लिखने को प्रेरित किया /ये इस रचना की सार्थकता है/बहुत बहुत आभार प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 1:24am

एक सुन्दर और सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अविनाशजी.

अलबत्ता, गई को गईं होना चाहिये. यह टंकण त्रुटि ही है. गीत बहुत बढिया हुआ है.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 30, 2014 at 7:23pm

नींद में सपनों की खूबसूरत दुनिया.... को तलाशती कविता के लिए हार्दिक बधाई आ० अविनाश जी 

Comment by AVINASH S BAGDE on June 24, 2014 at 7:10pm
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 23, 2014 at 12:05pm

सुन्दर कल्पना अभिव्यक्ति के लिए बधाई श्री अविनाश बागडे जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 23, 2014 at 9:03am

वाह अच्छा नवगीत रचा है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by MAHIMA SHREE on June 22, 2014 at 6:59pm

मलमल के बिस्तर से तन को
हमने जोड़ रखा
उसके ऊपर मन-चादर को
कस के ओढ़ रखा
रातों की महफ़िल से गज़लें
जाने कहाँ गई ?... वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण नवगीत आदरणीय अविनाश सर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 22, 2014 at 1:20pm

बागडे जी

आपका गीत भाव प्रवण  है i ह्रदय को स्पर्श करता है i बधाई i

कृपया ध्यान दे...

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