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प्यार और बेड़ियाँ

एक पुरुष करता है
अपनी स्त्री  से बहुत प्यार.
उसने डाल दी है
उसके पांवों में बेड़ियाँ.
वह उसे खोना नहीं चाहता.
स्त्री भी करती है
उससे बेपनाह मुहब्बत.
वह भी उसे खोना नहीं चाहती.
पर वह नहीं डाल पाती है
उसके पैरों में बेड़ियाँ.
बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.


नीरज कुमार नीर ..
मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 2:11am

थोड़ी और कसावट के लिए समय मांगती हुई सभावनाओं भरी इस कविता के लिए हार्दिक बधाई, भाई नीरज नीर जी.

शुभेच्छाएँ

Comment by बृजेश नीरज on July 1, 2014 at 2:50pm
आदरणीय नीरज जी, अच्छी कविता है। आपको हार्दिक बधाई।
Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 11:54am

आपका धन्यवाद आदरणीय भाई जीतेन्द्र गीत जी ..

Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 11:53am

आपका हार्दिक धन्यवाद .. आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 1, 2014 at 11:37am

आदरणीय नीरज जी,

आपने मेरे कहे को संज्ञान में लिया...आपका धन्यवाद 

मुझे भी लगता है कि प्रेमिका के स्थान पर स्त्री ही कर देना ज्यादा उचित होगा...

अंतिम पंक्ति में आपने लिखा है पैसों के बल पर खरीदी जाती हैं बेड़िया.. उन्ही बेड़ियों के सापेक्ष देखने पर स्त्री ही यथोचित प्रतीत होता है.

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 10:08am

ऐसे प्रेम अक्सर सुनने में आते है इसे  शायद अपने अंदर बहुत सारी असुरक्षित भावनाओं की एक मानसिक बिमारी भी कह सकते हैं.

प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी

Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 9:52am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी मनोबल बढाने हेतू आपका सादर धन्यवाद ..

Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 9:51am

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी आपका इस प्रोत्साहन हेतू अनेक धन्यवाद ..

Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 9:50am

आदरणीया मीना पाठक जी सादर धन्यवाद ..

Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 9:50am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा "प्रेमिका " की जगह अगर स्त्री कर दूँ तो शायद यह अधिक उपयुक्त होगा .. अगर आप  की सहमति हो तो मैं इसे एडिट कर दूंगा .. आभार.

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