For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार और बेड़ियाँ

एक पुरुष करता है
अपनी स्त्री  से बहुत प्यार.
उसने डाल दी है
उसके पांवों में बेड़ियाँ.
वह उसे खोना नहीं चाहता.
स्त्री भी करती है
उससे बेपनाह मुहब्बत.
वह भी उसे खोना नहीं चाहती.
पर वह नहीं डाल पाती है
उसके पैरों में बेड़ियाँ.
बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.


नीरज कुमार नीर ..
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on July 1, 2014 at 9:47am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा ... आपका हार्दिक आभार..  . पुरुष जिस स्त्री को पसंद करता है या जिससे प्रेम करता है , उसे हासिल करना चाहता है और उसे हासिल करने के उपरान्त उसकी स्वतंत्रता, उसकी सोच पर बंदिशे डाल देता है, जबकि ऐसी बंदिशे उसे स्वयं के लिए पसंद नहीं होती. स्त्री को किससे मिलना चाहिए, किससे कितनी बातें करनी चाहिए ये तमाम बातें वह तय करना चाहता है   और जैसा कि  आपने बिलकुल उचित ही कहा आर्थिक रूप से पुरुष पर निर्भरता ही इन बंदिशों की , बेड़ीयों  की मुख्य वजह है .. अगर स्त्री आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होती है तो उस पर ऐसी बंदिशे सामान्य रूप से नहीं डाली जा सकती .   आशा करता हूँ कि मैं अपनी बात स्पष्टता से कह पाया .. फिर भी आपसे विशेष मार्ग निर्देश की अपेक्षा करता हूँ .. सादर धन्यवाद ..   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 30, 2014 at 8:00pm

आपकी अतुकांत वैचारिक अभिव्यक्तियों की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूँ मैं आ० नीरज 'नीर' ज...

लेकिन..

प्रेमिका का बेड़ी में बंध जाना मुझे समझ नहीं आया... क्या ये तोहफों से मन को वश में करने की बात है तो इसके लिए बेड़ी शब्द थोड़ा कठोर है...  और अगर स्त्री को आधीन करने की बात है तो विवाह के बाद तो अपनी आर्थिक स्वाधीनता खो कर आश्रिता हो सकती है कोइ पत्नी पर प्रेमिका...के सन्दर्भ में मैं इस अभिव्यक्ति को समझ नहीं सकी.... कृपया भाव स्पष्ट करने की कृपा कर दें 

सादर.

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 6:39pm

बहुत खूब , सुंदर भाव , बधाई । 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 25, 2014 at 11:47am

क्यों बहाते हैं आँखों से नीर 

कब हरण होगा 'इनका' पीर!  स्त्री का कल्याण कौन करेगा?

Comment by Meena Pathak on June 23, 2014 at 12:19pm

बेड़ियाँ मिलती हैं बाजार में 
खरीदी जाती हैं पैसों के बल पर.................. बहुत सही बात कही आपने अपनी रचना के मध्याम से | सुन्दर रचना हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service