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ताज़ा लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ

221 2121 1221 212

ताज़ा लहू के सुर्ख़ निशाँ छोड़ आया हूँ

हर गाम एक किस्सा रवाँ छोड़ आया हूँ

 

वो रोज़ था, मुझे न मयस्सर ज़मीं हुई

ये हाल है कि अब मैं जहाँ छोड़ आया हूँ

 

परदेस में लगे न मेरा मन किसी तरह

बच्चों के पास मैं दिलो-जाँ छोड़ आया हूँ

 

उड़ती हुई वो ख़ाक हवाओं में सिम्त-सिम्त

जलता हुआ दयार धुआँ छोड़ आया हूँ                   दयार= मकान

 

मौजूदगी को मेरी तरसते थे रास्ते

चलते हुये उन्हें मैं कहाँ छोड़ आया हूँ

 

दुश्वारियाँ सफर में बहुत हैं ''शकूर'' पर

मैं हौसलों के दम पे अमाँ छोड़ आया हूँ                अमाँ= सुरक्षा

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by भुवन निस्तेज on July 31, 2014 at 10:35pm

आदरणीय शिज्जू साहब यह एक बहुत ही बेह्तरीन आला दर्ज़े की गज़ल हुई है, इस पर तहे दिल से दाद कबूल करें । 

Comment by savitamishra on July 30, 2014 at 3:41pm

ख़ूबसूरत ग़ज़ल


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 8:12pm

आदरणीया डॉ प्राची जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 8:11pm

आदरणीय सौरभ सर हौसला अफ्ज़ाई का शुक्रिया स्नेह बना रहे।
सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 8:10pm

आदरणीय करुण सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 8:10pm

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 4:53pm

बहुत शानदार अशआर कहे हैं आ० शिज्जू जी 

 

दुश्वारियाँ सफर में बहुत हैं ''शकूर'' पर

मैं हौसलों के दम पे अमाँ छोड़ आया हूँ....बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 4:25am

ग़ज़ल अच्छी हुई है .. दाद कुबूल कीजिये शिज्जू भाई.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2014 at 5:56pm

aadarneey jee is behtareen ghazal ke liye tahe dil badhaaayee saadar 

Comment by Santlal Karun on July 4, 2014 at 5:13pm

शिज्जू जी, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ |

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