Comment
आपके ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद, लक्ष्मण धामी जी.
आपकी सोच बहुत ही उन्नत है. जल्दबाजी से बचें और शेरों पर तनिक और समय दें तो बहुत कुछ और भी संयत ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है. ऐसा मेरा मानना है.
मतले में ही शुतुर्गुर्बा का ऐब लग रहा है.
जनम से आदमी हो, आदमी क्यों हो नहीं पाया
यह मिसरा कायदे से ऐसा होना था -
जनम से आदमी हो, आदमी क्यों हो नहीं पाये
लेकिन इसे यों भी किया जा सकता है ताकि ग़ज़ल के रदीफ़ को संतुष्ट कर पाये -
जनम से आदमी ही आदमी क्यों हो नहीं पाया.. अब यह प्रश्न तार्किक भी लगता है.
इस शेर का मुझे कोई अता-पता नहीं मिल पाया -
मिला जो, कब खुशी उससे समेटी यार लोगों ने
उसी का गम जिगर को है जमाने जो नहीं पाया.. ..
अवश्य है, मेरी समझ में बात नहीं आयी है. माफ़ कीजियेगा
इस शेर पर दिल से दाद कुबूल करें, भाईजी -
तुझे क्यों खांसना उसका दिनों में भी अखरता है
पिता जो तेरे बचपन में भरी शब सो नहीं पाया
साथ ही मक्ता का तो भाईजी जवाब नहीं है.
बहुत-बहुत बधाई
आ० भाई गुमनाम जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई विजय निकोर जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का अर्थ यही है की लेखन सफल हुआ l स्नेहाशीष बनाये आखें यही कामना है l
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है.................................बधाई,
इस अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।
आ० बृजेश भाई उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l स्नेह बनाये रखें l
आ० भाई गिरिराज जी आपका स्नेहाशीष पाकर धन्य हुआ , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई जीतेन्द्र जी ग़ज़ल आप तक पहुंची लेखन सार्थक हुआ हार्दिक धन्यवाद l
आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
तुझे क्यों खांसना उसका दिनों में भी अखरता है
पिता जो तेरे बचपन में भरी शब सो नहीं पाया --------- बात अन्दर तक लगी । बधाई भाई जी ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online