अपने बच्चों को सिंकते हुए भुट्टे और बिकते हुए जामुनों को ललचाई नज़रों से देखते हुए वो मन मसोस कर रह जाती थी। आज उसे तनख़्वाह मिली थी, उसके हाथों में पोटली देख कोने में खेलते हुए दोनों बच्चे खिलौने छोड़ दौड़ पड़े। तभी बीड़ी पीते हुए पति ने उससे कहा-“ला पैसे, बहुत दिनों से गला तर नहीं हुआ”... “लेकिन आज मैं बच्चों के लिए...” “तड़ाक!..." "तो तू मेरे खर्च में कटौती करेगी?” पोटली जमीन पर गिरी, जामुन और भुट्टे मैली ज़मीन सूँघने लगे और... माँ पर पड़े थप्पड़ से सहमे हुए बच्चे अपना गाल सहलाते हुए पुनः अपने टूटे-फूटे खिलौनों के साथ कोने में दुबक गए।
मौलिक व अप्रकाशित
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पहले तो गरीबी की मार ऊपर से पति बेवडा ...जिसकी नजरों में ममता की कोई कीमत नहीं ,कोई जिम्मेदारी का अहसास नहीं,अपने स्वास्थ्य की कोई चिंता नहीं ....कैसे घर चले ,कैसे बच्चों की परवरिश हो ?ये एक निम्न, आर्थिक रूप से कमजोर, मजदुर तबके की गंभीर समस्या है| जो आपकी इस लघु कथा में खूब उभर कर आई है|बहुत-बहुत बधाई आ० कल्पना दी इस सुन्दर सार्थक लघु कथा के लिए |
अक्सर देखा जाता है की घरों में काम वाली बाई की पगार उसका निठल्ला आदमी छीन कर मदिरा पान में उड़ा देता है
और बच्चे खाने पीने और शिक्षा तक से महरूम रहकर जीवन जीने को बाध्य हो जाते है | ऐसी मार्मिक दशा दर्शाते हुए
सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना रामनानी जी |
बहुत मर्मस्पर्शी लघुकथा , बधाई आदरणीया कल्पना जी
बहुत सुन्दर आदरणीय दीदी
महनीया
अति सुन्दर i वह हकीकत जो हम निर्विकार देखते रहते है i सादर i
बहुत सुन्दर कथा अदरणीया...
भुट्टे और जामुन का साथ वास्तविकता के और करीब लाता..
भुट्टा अमुमन बारिश के दिनों में आता है और बेर वसंत के समय बिकने को तैयार होता है...सुधीजन इस पर प्रकाश डाल सकते हैं...
सादर.
उफ़ ....मार्मिक...बच्चों की निगाहें घूम गयी ...आँखों के सामने .... बहुत अच्छी लघु कथा ....बधाई आपको मैम ...
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