माँ, बहन, बेटी के आँसू पे यहाँ रोता है दिल
रोज़ लुटती अस्मतें, क़त्लों का ग़म ढोता है दिल |
आबरू को उम्रदारों ने भी बदसूरत किया
मर्दों का बचपन भी है बदकार बद होता है दिल |
शाहो-साहब औ’ गँवारों सब में बद शह्वानीयत
सब की आँखों में चढ़ा शर्मो-हया खोता है दिल |
है हुक़ूमत बेअसर बेख़ौफ़ हैं ज़ुल्मो-ज़बर
हर घड़ी हर साँस जैसे ख़ार पे सोता है दिल |
आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर औरतें
बेरहम इंसाफ़ भी तेज़ाब से धोता है दिल |
(मौलिक व अप्रकाशित)
-- संतलाल करुण
Comment
आदरणीय विजय शंकर जी,
आप की सराहना से लगा श्रम सार्थक हुआ; हार्दिक आभार !
आदरणीय लक्षमण धामी जी,
आप के प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
तारीफ़ के लिए तहे दिल से आभार !
आदरणीया सविता मिश्रा जी,
प्रेरक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !
आ0 भाई संतलाल जी , हकीकत बयां करती इस बेहतरीन गजल के लिए कोटि कोटि बधाइयां । इसी तरह आपकी बेहतरीन गजलों का आस्वादन करने को मिले यही कामना है । शुभ शुभ....
आदरणीय संत लाल भाई , एक अच्छी गज़ल के लिये आपको मेरी दिली बधाइयाँ ॥
बहुत बढ़िया आदरणीय....सादर नमस्ते
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,
सराहना के लिए बहुर-बहुत आभार !
करुण जी
लाजवाब i बेहतरीन i
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