For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश "नूर" - कभी वो मेहमां रही है मेरी

आ. तिलक राज कपूर सर के मार्गदर्शन से एक ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है ..  उम्मीद है आप का स्नेह प्राप्त होगा
.
12122/ 12122/ 12122/ 12122 

हया के मारे वो वस्ल के पल, नज़र का पर्दा गिरा रही है,
मगर ये गालों की सुर्ख़ रंगत, हर एक ख्वाहिश बता रही है.  
.

कभी ज़मीं वो कुरेदती है, घुमाए जाती है अपना कंगन,  
छुपा रही है मिलन की चाहत, तभी तो नज़रें चुरा रही है.
.

ज़रा हदों से निकल के आगे मरोड़ दी जब कलाई उसकी, 
लगे कि जैसे वो कसमसाकर क़रीब अपने बुला रही है.
.

ये हसरतों के भड़कते शोले, लगे कि दुनिया मचल उठी हो,
उखडती साँसों की धौंकनी अब, लवें दीयों की बुझा रही है.
.

ये मोगरे के महकते गजरे, महक रहा है कभी पसीना, 
लगी महकने हयात सारी, महक-महक में समा रही है.
.

कभी वो मेहमां रही है मेरी, कभी वो करती है मेज़बानी,
कभी लगे है वो ओढ़नी सी, कभी वो खुद को बिछा रही है.
.

घटाएँ बरसी किनारे टूटे, चुनी हैं राहें नदी ने अपनी,
नदी समंदर से मिल रही है, वो अपनी हस्ती मिटा रही है.

.
निलेश "नूर"  
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 8:16am

शुक्रिया आ. सौरभ सर.. आपकी दाद पाकर हौसला मिलता है ..
बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 10, 2014 at 12:24am

दिल अश-अश कर उठा साहब..  इस दिल की अतल गहराइयों से बधाइयाँ लीजिये.

बहुत खूब ! भाईजी, बहुत खूब !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 9, 2014 at 10:34am

शुक्रिया विजय मिश्र जी ..आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ है. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 1:32pm

शुक्रिया आ. rajesh kumari जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2014 at 10:14pm

कभी ज़मीं वो कुरेदती है, घुमाए जाती है अपना कंगन,  
छुपा रही है मिलन की चाहत, तभी तो नज़रें चुरा रही है.----एक चित्र सा बन गया मानो आँखों के सम्मुख ----हसीन  पलों को खूबसूरती से कैद किया है अशआरों में ,बहुत सुन्दर मुसल्सल ग़ज़ल लिखी आपने ,दाद कबूलिये आ० नीलेश जी 

Comment by विजय मिश्र on July 5, 2014 at 4:31pm
गजल के एक-एक मिसरे में जवानी की कसीस है और उमर छोटा कर देने की इल्म भी है इसमें |बेहद लजीज और शीरीं सी गजल |भाई बेहिसाब दाद कुबूल करें निलेश जी |
Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 5, 2014 at 12:30pm

शुक्रिया आदरणीय विजय जी 

Comment by vijay nikore on July 5, 2014 at 11:48am

//घटाएँ बरसी किनारे टूटे, चुनी हैं राहें नदी ने अपनी,
नदी समंदर से मिल रही है, वो अपनी हस्ती मिटा रही है.
//

वाह, बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 4, 2014 at 10:06pm

शुक्रिया आ. संतलाल जी  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 4, 2014 at 10:05pm

शुक्रिया श्री नरेन्द्र सिंह जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service