For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझे वो याद करते हैं जो भूले थे कभी मुझको,
बस ऐसे ही जहां भर की मिली है दोस्ती मुझको.   
.

ज़माना ज़ह्र  में डूबे हुए नश्तर चुभोता है,
बचाती ज़ह्र  से लेकिन मेरी ये मयकशी मुझको.    
.

मुझे कहने लगा ख़ंजर, “मुहब्बत है मुझे तुमसे,
कि इक दिन मार डालेगी तुम्हारी सादगी मुझको.” 
.

ज़माने का जो मुजरिम है सज़ाए मौत पाता है,
मिली मेरे गुनाहों पर सज़ाए ज़िन्दगी मुझको.
.

ख़ुदाया शह्र -ए-पत्थर में बना मुझ को तू आईना,
समझनी है अभी इन पत्थरों की बेबसी मुझको. 
.

बहुत नज़दीक के रिश्ते, बहुत तकलीफ़ देते हैं,
गुज़ारिश है फ़क़त इतनी, बना लो अजनबी मुझको.
.

बिखर जाऊं जहां में “नूर” बनके है यही ख्वाहिश,
मेरे मौला अता कर बरक़तों की रौशनी मुझको.
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 12:51pm

शुक्रिया डॉ. प्राची सिंह जी ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2014 at 12:49pm

आदरणीय नीलेश जी 

बहुत खूबसूरत पुरअसर अशआर कहे हैं..

सभी एक से बढ़ कर एक हैं.

ज़माने का जो मुजरिम है सज़ाए मौत पाता है, 
मिली मेरे गुनाहों पर सज़ाए ज़िन्दगी मुझको........................वाह! बहुत खूब 
.

ख़ुदाया शह्र -ए-पत्थर में बना मुझ को तू आईना,
समझनी है अभी इन पत्थरों की बेबसी मुझको......................क्या खूब ख़याल है...वाह!

इस गजल के होने par बहुत बहुत बधाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:49pm

आ. Saurabh Pandey जी ..आपने जिस ओर ध्यान दिलाया है उसे अभी दुरुस्त किये लेता हूँ ..अपनी मूल प्रति में ..
बहुत बहुत शुक्रिया आपने इस्तनी बारीक बात भी सामने लाई.
वैसे एक दो और गज़ले है जो आपका इंतज़ार कर रही हैं .. :)
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 5:47pm

shukriya aa. Shantilal ji 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 5:45pm

इस रवां-दवां ग़ज़ल पर देर से आया हूँ, आदरणीय नीलेशजी. तो क्या हुआ. दिल से बधाइयाँ दे रहा हूँ.

शेरों ने बस झूमने को मजबूर कर दिया है.

अलबत्ता, इन बबर शेरों में एक ही है जो तनिक शेर हो कर रह गया है ... :-)))
ज़माना ज़ह्र  में डूबे हुए नश्तर चुभोता है,
बचाती ज़ह्र  से लेकिन मेरी ये मयकशी मुझको.
इसके दोनों मिसरों में ज़ह्र का आना तनिक जमा नहीं. अब मेरी समझ ही इतनी है आदरणीय, क्षमा कीजियेगा.

सानी यदि ऐसे हो जाये तो क्या गलत होगा - बचाती है मगर उससे मेरी ये मयकशी मुझको.

अब भी मैं खुल के कह रहा हूँ, ये मैंने यों ही झोंक दिया है. आप कत्तई अन्यथा न लेंगे. तथा, सभी सुधीजनों की सलाह से हम जैसे लोग सीखते-समझते हैं, आदरणीय.
सादर

Comment by Santlal Karun on July 4, 2014 at 5:08pm

"ख़ुदाया शह्र -ए-पत्थर में बना मुझ को तू आईना,
समझनी है अभी इन पत्थरों की बेबसी मुझको." ... निलेश जी, सुन्दर-सी ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 7:17pm

धन्यवाद आ. गुमनाम जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 1, 2014 at 7:16pm

धन्यवाद आदरणीय विजय जी 

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 1, 2014 at 4:07pm

हुत ही सुन्दर ग़ज़ल। आपको बहुत बहुत बधाई।

मुझे कहने लगा ख़ंजर, “मुहब्बत है मुझे तुमसे,
कि इक दिन मार डालेगी तुम्हारी सादगी मुझको.”

बिखर जाऊं जहां में “नूर” बनके है यही ख्वाहिश,
मेरे मौला अता कर बरक़तों की रौशनी मुझको.

हार्दिक बधाई।

Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 4:03pm

//बहुत नज़दीक के रिश्ते, बहुत तकलीफ़ देते हैं,
गुज़ारिश है फ़क़त इतनी, बना लो अजनबी मुझको.//

बहुत ही खूबसूरत गज़ल बनी है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
44 minutes ago
Admin posted discussions
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
15 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
21 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service