For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह दोस्तों के साथ मूवी देखकर और लंच करके लौटी थीं | घर में घुसते ही माँ ने कहा:

"अरे शर्मा अंकल आए हैं, ड्राइंग रूम में जा के नमस्ते तो कर ले |"
"ठीक है माँ, मिल लेती हूँ जा के , जरा दुपट्टा तो डाल लूँ |"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 16, 2014 at 1:00am

आभार सौरभजी , मैंने प्रयास किया था , कितना सफल हुआ आप लोग ही बताएँगे..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 6:38pm

भावुक हुए मन के लिए तो खुराक मिल गयी लेकिन चैतन्य मन कुछ और विन्दुओं पर स्पष्टता चाहता है. शुभ्रांशु भाई ने तथ्यात्मक विन्दु उठाये हैं, आदरणीय.
बहरहाल इस प्रस्तुति पर आपको अनेकानेक बधाइयाँ. आपकी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी.
शुभ-शुभ

Comment by विनय कुमार on July 10, 2014 at 12:39pm

आभार जितेंद्रजी , उत्साह बढ़ाने के लिए..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 10, 2014 at 9:12am

महज कुछ ही शब्दों में लघुकथा बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है, बहुत ही बढ़िया लघुकथा आदरणीय विनय जी. यहाँ इस लघुकथा में पाठक अपनी सोच को जहाँ तक ले जाए, ले जा सकता है.

आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by विनय कुमार on July 9, 2014 at 7:50pm

आभार सुशील सरनाजी |     

Comment by Sushil Sarna on July 9, 2014 at 7:21pm

  वर्तमान को जीती एक दिल को छूती लघु कथा  ....  इस प्रस्तुति  के लिए हार्दिक बधाई आरणीय विनय कुमार सिंह जी 

Comment by विनय कुमार on July 9, 2014 at 12:44pm

आभार रवि प्रभाकरजी , इसी तरह मार्गदर्शन देते रहिये..

Comment by Ravi Prabhakar on July 9, 2014 at 11:04am

जरा दुपट्टा तो डाल लूँ।
सारी लघुकथा का सार सिर्फ इन पांच शब्दों में ही है। बहुत अच्छी लघुकथा कह गए आप। शिल्पकारी के लिहाज से भी एकदम उत्तम प्रस्तुति। इस लघुकथा का शीर्षक एकदम स्टीक। कुल मिला कर लघुकथा के मानदंडों पर एकदम खरी उतरती एक शानदार लघुकथा। बधाई स्वीकार कर कृतार्थ करें।

Comment by विनय कुमार on July 8, 2014 at 11:47pm

आभार शिज्जु जी एवम सुभ्रांशुजी , अपने बड़ी बारीकी से विश्लेषण किया है | दरअसल माता पिता अपने समकक्ष लोगों को अलग नज़र से देखते हैं लेकिन बच्चियां तो अपने ऊपर पड़ने वाली नज़रों को ताड़ लेती हैं , बस यही कहने का प्रयत्न किया है मैंने |

Comment by Shubhranshu Pandey on July 8, 2014 at 11:22pm

आदरणीय विनय जी, 

कथा के विषय को ले कर थोडी़ उहापोह है...जैसे कथा आगे बढती है और समझ में आती है, उसमें और आ. राजेश कुमारी जी और डा गोपाल जी के विचार और फ़िर उस पर आपके अनुमोदन ने कथा के अलग प्रवाह को बताया है...

अगर चचा जान ऎसे हैं तो कोई माता अपनी पुत्री को पहले आगाह करेगी ना कि पुत्री को पहल करनी पडे़गी...माता ऎसे लोगों से मिलने देने से ही परहेज करवायेगी..लेकिन अगर कथाकार कि मंशा ऎसी ही है तो कत्थ्यों को बदलने से आशय ज्यादा स्पष्ट होगा.

सादर.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
31 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
23 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service