2122 2122 2122 2
कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे
आपा धापी से लगे हैं पस्त हर कोई
कोई तो मिल जाये जो ठहरा दिखाई दे
उथलों में कब ठहरा है बरसात का पानी
ढूँढता है ताल , जो गहरा दिखाई दे
भावनायें गूंगी हो कोनों में हैं सिमटीं
शब्द क़ैदी सा लगा, पहरा दिखाई दे
कोयला जो राख के नीचे दबा था कल
ये हवा कैसी ? कि वो दहका दिखाई दे
अब बहारों ने क़सम भी खाईं हैं , शायद
कल से कोई बाग़ अब महका दिखाई दे
आइनों ने इसलिये बदनामियाँ झेलीं
सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
मित्र
बहुत सुन्दर एवं प्रभावशाली गजल्हुयी है i बधाई हो
आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरनीय जिनेद्र भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ॥
आदरणीय सुशील भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आइनों ने इसलिये बदनामियाँ झेलीं
सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे
कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे
badhai sir gazal achchhi lagi,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे.............बेहतरीन मतला,, आजी का सच
उथलों में कब ठहरा है बरसात का पानी
ढूँढता है ताल , जो गहरा दिखाई दे ................वाह ! बहुत ही गजब, सोला आने सच
आइनों ने इसलिये बदनामियाँ झेलीं
सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे...................आपका अभिप्राय ...आत्म मंथन
बहुत ही कड़वाहट ली हुई सुंदर गजल आदरणीय गिरिराज जी, तहे दिल से बधाइयाँ आपको
कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे
वाह क्या बात कह गए आदरणीय गिरिराज जी .... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय नरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से आत्मिक खुशी मिली , अशआर की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
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