For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कोई तो मिल जाये जो ठहरा दिखाई दे ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122     2122      2   

कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे

एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे

 

आपा धापी से लगे हैं पस्त हर कोई

कोई तो मिल जाये जो ठहरा दिखाई दे

 

उथलों में कब ठहरा है बरसात का पानी

ढूँढता है ताल , जो गहरा दिखाई दे   

 

भावनायें गूंगी हो कोनों में हैं सिमटीं  

शब्द क़ैदी सा लगा, पहरा दिखाई दे 

 

कोयला जो राख के नीचे दबा था कल

ये हवा कैसी ? कि वो दहका दिखाई दे  

 

अब बहारों ने क़सम भी खाईं हैं , शायद

कल से कोई बाग़ अब महका दिखाई दे

 

आइनों ने इसलिये बदनामियाँ  झेलीं 

सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे  

*********************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

 

Views: 787

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on July 17, 2014 at 3:08pm
आइनों ने इसलिये बदनामियाँ झेलीं
सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे ...... गजल का नायाब शेअर कहूँगी इसे
बहुत सी शुभकामनायें आ0 गिरी राज जी!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2014 at 2:50pm

मित्र

बहुत सुन्दर एवं प्रभावशाली गजल्हुयी है i बधाई हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 17, 2014 at 2:02pm

आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 17, 2014 at 2:00pm

आदरनीय जिनेद्र भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 17, 2014 at 2:00pm

आदरणीय सुशील भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 16, 2014 at 11:03pm

 

आइनों ने इसलिये बदनामियाँ  झेलीं 

सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे

कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे

एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे

badhai sir gazal achchhi lagi,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 16, 2014 at 8:45pm

कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे

एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे.............बेहतरीन मतला,, आजी का सच

उथलों में कब ठहरा है बरसात का पानी

ढूँढता है ताल , जो गहरा दिखाई दे ................वाह ! बहुत ही गजब,    सोला आने सच

आइनों ने इसलिये बदनामियाँ  झेलीं 

सामने जाओ, सही चहरा दिखाई दे...................आपका अभिप्राय ...आत्म मंथन

बहुत ही कड़वाहट ली हुई सुंदर गजल आदरणीय गिरिराज जी, तहे दिल से बधाइयाँ आपको

Comment by Sushil Sarna on July 16, 2014 at 7:36pm

कोई तो मंज़र कभी अच्छा दिखाई दे
एक तो आदम कभी सच्चा दिखाई दे


वाह क्या बात कह गए आदरणीय गिरिराज जी .... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2014 at 12:35pm

आदरणीय नरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2014 at 12:34pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से आत्मिक खुशी मिली , अशआर की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service