‘महिला उत्थान’ मुद्दे पर संगोष्ठी से घर लौटते ही कुमुद से उसके पति ने कहा... “अभी थोड़ी देर पहले ही दीपा आई थी मिठाई लेकर वो बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई है कंप्यूटर कोर्स तो उसका पूरा हो ही गया था,तुम्हारी प्रेरणा और मार्ग दर्शन से कितना कुछ कर लिया इस लड़की ने हमारे घर में काम करते-करते.... अब सोचता हूँ अपने ऑफिस में एक वेकेंसी निकली है इसको रखवा दूँ “
कुमुद कुछ सोच कर बोली”अजी इतनी भी क्या जल्दी, वैसे भी सोचो इतनी अच्छी काम वाली फिर कहाँ मिलेगी, फिर तो ये काम करेगी नहीं”!!!
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आ० डॉ विजय शंकर जी ,आपसे अनुमोदन पाकर लघु कथा सार्थक हुई आपका हृदय से आभार |
अमन कुमार जी, आपने सही विश्लेषण किया इसी तरह की मानसिकता ज्यादातर लोगों में होती है|लघुकथा के मर्म ने आपको प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ ,दिल से आभार आपका |
आ० सविता मिश्रा जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,हृदय से आभारी हूँ |
दुसरो का भला करने की इच्चा में अपना कुछ नुकसान न हो , बस नाम ही नाम हो .......
सच्चाई है आपकी कहानी में
बहुत ही बढ़िया लघुकथा..इंसानी फितरत ही है ऐसी
विनय कुमार जी ,आपको लघु कथा अच्छी लगी बहुत- बहुत आभार आपका|
बहुत अच्छी रचना , ऐसी मानसिकता बहुत मिलती है..
शुभ्रांशु जी ,लघु कथा आपकी पारखी समीक्षा से गुजरी मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका |
जितेन्द्र भैया ,लघुकथा के अनुमोदन पर अपने विचार रखे बहुत अच्छा लगा | आपने सच कहा बहुत उदाहरण मिल जायेंगे इस दोयम दर्जे वाली मानसिकता के |आपका हार्दिक आभार.
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