छपाक्… !
“अरे ये क्या किया.. जाने देते.. ”, एक यात्री डपटता हुआ चिल्लाया, “..फ़िर किसी और को बेच दोगे.. साले पूजा की चीजें भी नहीं छोडते हैं ये..”
“जब पूजा करना तो बोलना.. वर्ना सरकार ने अब गंगा को गंदा करने वालों को जेल भेजना शुरु कर दिया है..”, एक तिरछी मुस्कान के साथ मन्नू ने आँख मारी.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,
कथा पर विचार देने के लिये धन्यवाद.
सादर.
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,
कथा पर समय देने के लिये धन्यवाद.
सादर.
एक तिरछी मुस्कान के साथ मन्नू ने आँख मारी." - इस पंक्ति पर आते आते कहानी का मन में जाग्रत होता उद्धेश ही बदल
गया | अर्थात वह गंगा की सफाई के बहाने पुनः बेचने के लिए पूजा में चढ़ाएं नारियल फूल आदि निकाल कर भक्तो की
भावनाए आहत कर रहा है | जो भी मकसद हो, अच्छी लघु कथा हुई है | बधाई
हाँ, ’रंगीन पन्ने’ एक उत्कृष्ट लघुकथा रही है. मुझे विस्मरण हुआ इसका खेद है. किन्तु यह भी आवश्यक है कि रचना प्रस्तुति की आवृति बढ़ाई जाये. .. :-))
आदरणीय सौरभ भैया,
आप लोगों के सानिध्य में अभी कलम पकड़ना सीखा है. इस मंच ने एक जोश भरा कि मैं कुछ लिख सकता हूँ. अमुमन व्यंग्य से अपनी बात कहता हूँ. पिछले दिनों योगराज जी और आपके लघु कथा पर विस्तृत कामेण्ट केबाद लघु कथा पर हाथ आजमाया है.
इस कथा से पहले भी //रंगीन पन्ने// एक लघुकथा पोस्ट कर चुका हू.
कथा पर अपने विचार देने के लिये घन्यवाद
सादर.
आदरनीय , एक अच्छी लघुकथा के लिये बधाई ॥
आदरणीय विनय जी,
रचना पर समय देने के लिये धन्यवाद.
सादर.
समाज में प्रचलित कई-कई विसंगतियों को परिपाटियों का रूप मिल गया है. मन्नू जैसे किशोर ऐसे तीर्थों के होने के वर्तमान अर्थ भी जानते हैं और भीड़ के रूप में जमा हुए लोगों की मूल भावना को भी समझते हैं. तो वहीं पंथीय परिपाटियों के नाम पर भावनाओं के दोहन का खेल भी उन्हें खूब पता होता है. ऐसे विन्दुओं को समेटती यह लघुकथा बहुत कुछ साझा करती है.
संभवतः, आपके व्यंग्यकार से पहली लघुकथा सुन रहा हूँ. उस हिसाब से यह लघुकथा आशान्वित करती है.
बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ..
आदरणीय जितेन्द्र जी, कथा पर अपने विचार देने के लिये धन्यवाद.
सादर.
बहुत उम्दा लघुकथा सुभ्रांशुजी , साधुवाद..
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