मैं चाहता हूँ कि बिल्ली सी हों मेरी कविताएँ !
क्योकि -
युद्ध जीत कर लौटा राजा भूल जाता है -
कि अनाथ और विधवाएँ भी हैं उसके युद्ध का परिणाम !
लोहा गलाने वाली आग की जरुरत चूल्हों में है अब !
एक समय तलवार से महत्वपूर्ण हो जातीं है दरातियाँ !
क्योंकि -
नई माँ रसोई खुली छोड़ असमय सो जाती है अक्सर !
कहीं आदत न बन जाए दुधमुहें की भूख भूल जाना !
कच्ची नींद टूट सकती है बर्तनों की आवाज से भी ,
दाईत्वबोध पैदा कर सकता है भूख से रोता हुआ बच्चा !
क्योंकि -
आवारा होना यथार्थ तक जाने का एक मार्ग भी है !
‘गर्म हवाएं कितनी गर्म हैं’ ये बंद कमरे नहीं बताते !
प्राचीरों के पार नहीं पहुँचती सड़कों की बदहवास चीखें !
बंद दरवाजे में प्रेम नहीं पलता हमेशा ,
खपरैल से ताकते दिखता है आंगन का पत्थरपन भी !
क्योकि -
मैं कई बार शब्दों को चबाकर लहूलुहान कर देता हूँ !
खून टपकती कविताएँ कपड़े उतार ताल ठोकतीं हैं !
स्थापित देव मुझे ख़ारिज करने के नियोजित क्रम में -
अपना सफ़ेद पहनावा सँभालते हैं पहले !
सतर्क होने की स्थान पर सहम जातीं हैं सभ्यताएँ !
पत्ते झड़ने का अर्थ समझा जाता है पेड़ का ठूंठ होना !
मैं चाहता हूँ कि बिल्ली सी हों मेरी कविताएँ -
विजय-यात्रा पर निकलते राजा का रास्ता काट दें !
जुठार आएं खुली रसोई में रखा दूध , बर्तन गिरा दे !
अगोर कर न बैठें अपने मालिक की भी लाश को !
मेरे सामने से गुजरें तो मुँह में अपना बच्चा दबाए हुए !
.
.
.
अरुण श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
अरुण जी
आपकी अनुभूति गहरी है i आप बहूत डूब कर र्लिखते हैं I प्रतीक और बिम्बों का तो कहना हे क्या ? आप निश्चित रूप से herald कवि हैं i जब मैं यह पंक्तिया पढता हूँ इओ कभी दिनकर याद आते है और कभी निराला ------?
मैं चाहता हूँ कि बिल्ली सी हों मेरी कविताएँ -
विजय-यात्रा पर निकलते राजा का रास्ता काट दें !
जुठार आएं खुली रसोई में रखा दूध , बर्तन गिरा दे !
अगोर कर न बैठें अपने मालिक की भी लाश को !
मेरे सामने से गुजरें तो मुँह में अपना बच्चा दबाए हुए !
.
.
चिंतन परक एक अलग अंदाज में उपजे सोच पर रची रचना भाव के लिए बधाई श्री अरुण श्री जी
आदरणीय अरुण जी ..ताजगी से परिपूर्ण रचना /..इस रचना चिंतन के लिए प्रेरित करती है ,,,यथार्थ बताती हैं और तेजी से बदलते परिवेश की तरफ इशारा भी करती है इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online