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पर यहीं पर करार सा है कुछ
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उजड़ा उजड़ा दियार सा है कुछ
पर यहीं पर करार सा है कुछ
गर्मियाँ खून में कहाँ बाक़ी
गर्म हूँ , तो बुखार सा है कुछ
खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर
बच गया फिर, उधार सा है कुछ
दिल को बेताबियाँ नहीं डसतीं
प्यार है, या कि प्यार सा है कुछ
फूल कलियों में खूब चर्चा है
अब ख़िंज़ा मे उतार सा है कुछ
टीस कहती है मुझ से रह रह के
कोई अपना ही ख़ार सा है कुछ
दोस्त, संजीदगी से मत लेना
बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
टीस कहती है मुझ से रह रह के
कोई अपना ही ख़ार सा है कुछ
अच्छा शेर है ...
हल्के फुल्के अंदाज़ मे पैनी बात करती खूबसूरत गज़ल ले लिए आदरणीय गिरिराज जी मुबारकबाद ....
आदरणीय गुमनाम भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ही मेरा संबल है , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से अभार ॥
खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर
बच गया फिर, उधार सा है कुछ
आप संजीदगी से मत लेना
बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ
waah sir ji ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,khoob,,,,
टीस कहती है मुझ से रह रह के
कोई अपना ही ख़ार सा है कुछ----वाह्ह्ह्ह
आप संजीदगी से मत लेना
बस कि निकला ग़ुबार सा है कुछ------ वाह कमाल सा है
खूबसूरत मतले से लेकर आखिरी शेर तक कमाल .....बस ढेरों दाद कबूलिये
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार ||
आदरणीया कल्पना जी , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार |
मित्र
गजल पढा तो यह समझा
अभी भी खुमार सा है कुछ i बधाई हो i
उजड़ा उजड़ा दियार सा है कुछ
पर यहीं पर करार सा है कुछ ................... बहुत सुंदर शब्द चयन । सर आप को बहुत बधाई /सादर
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