बड़ा ख़राब जमाना आ गया है , अब घर में विधर्मी नौकर रख लिया है , कौन खायेगा , पियेगा उसके घर । राधा ऊँचे स्वर में अपने पड़ोसन को बता रही थी ।
" अरे हमसे कहा होता , हमने दिला दिया होता नौकर , कोई कमी है इनकी " । पड़ोसन ने भी हाँ में हाँ मिलायी ।
शाम को बेटी से बात करते हुई राधा ने पूछा " अरे कोई काम वाली मिली की नहीं " ।
" हाँ माँ , मिल गयी है , बहुत सफाई से काम करती है फातिमा " ।
" देखना बेटा , संभाल के रखना , आज कल टिकते नहीं ये लोग , समझी "
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आभार सुभ्रांशुजी , ये तो हक़ीक़त है ..
आभार सविता मिश्रजी..
आदरणीय विनय जी,
दूसरों के घरों में झाँकते समय हमारी आँखो पर खुर्दबीन आ जाता है और अपने घर में देखने पर नजरबट्टू टूट जाता है.
सादर.
झकझोरती कथा
सादर बधाई
विनय जी आपका और आपके पात्रो का नजरिया अच्छ लगा i
दोहरा चरित्र यत्र तत्र बिखरे है ....बढ़िया लघुकथा
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