मेघ निबह
श्याम श्वेत निर्मोही
भ्रम फैलाये
उड़ती घटा छाये
सूर्य आछन्न
दुविधा में फंसाए
काम बढाए
अकस्मात बरखा
बाहर डाले
कपड़े निकालते
फिर डालते
गृहलक्ष्मी दुचित्ता
क्रोध बढ़ाए
उलझौआ पयोद
वक्त कीमती
दुरुपयोग होता
वक्त भागता
सुना था कभी कही
खुद पे बीती
खीझ दुघडिया पे
भुनभुनाती
काम है निपटाने
प्रावृट् बदरा
तुझे सूझे नौटंकी
घुंघट ओढ़
हुई तू तो बावरी|
तंग गृहणी
मेघ निरंग निस्तारा
भ्रान्ति से छुटकारा| सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
मीणा sis हार्दिक शुक्रिया आपका
प्रावृट् बदरा...वर्षा ऋतू का बादल ....आदरणीय सौरभ भैया ......पढ़ा हमने बच्चों की डिक्शनरी में ...गलत हैं क्या
बधाई के लिय सादर आभार आपका
इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें, आदरणीया ..
खीझ दुघडिया पे
भुनभुनाती
काम है निपटाने
प्रावृट् बदरा.. ये प्रावृट क्या होता है ?
आदरणीया , इस चोका रचना के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥
बहुत सुन्दर चोका ...बधाई आप को
रमेश भाई शुक्रिया आपका दिल से
प्रदीप चाचाजी सादर नमस्ते ...तहेदिल से शुक्रिया स्नेहमय कमेन्ट के लिय
सुंदर चोके, बधाई
धूप छांव का खेल
बदरा बेमेल काम बढ़ाये
सादर बधाई आदरणीया जी
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