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लघुकथा : बदलाव (गणेश जी बागी)

                                निगरानी टीम रघुआ को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई, दरअसल वो सब्जी बाज़ार मे अवैध बिजली वितरण का धंधा स्थानीय कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत से चला रहा था और प्रतिदिन प्रति बल्ब २० रुपये की वसूली सब्जी दुकानदारों से करता था.

                                लेकिन दूसरे ही दिन वो पुलिस हिरासत से वापस आ गया. कुछ विशेष नही बदला, सब कुछ पहले की तरह ही चलने लगा, बस अब बिजली किराया प्रतिदिन ३० रुपया हो गया था.

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : महाचोर

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2014 at 10:02pm

आदरणीय सौरभ भईया, आशीर्वाद स्वरुप की गई इस टिप्पणी हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ, उत्साहवर्धन हेतु कोटिश: धन्यवाद आदरणीय। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2014 at 10:00pm

बधाई ह्रदय से स्वीकार है आदरणीया मीना पाठक जी, उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2014 at 9:59pm

उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2014 at 6:56pm

आदरणीय बागी सर ..आपकी लघु कथा वर्तमान व्यवस्थ में व्याप्त बुराईयों की और इंगित करती है इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 7, 2014 at 1:07am

बसूली में कुछ टेक्स बाकी जो रह गया था. :-))) बहुत ही बढ़िया लघुकथा आदरणीय बागी जी, आपको बहुत-२ बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2014 at 9:38pm

यही होता आ रहा है अरसों से , पुलिसिया दबाव हमेशा कुछ पाने के लिये ही लगाया जाता है , और ऐसे ही रेट बढ़ाये जाते रहे हैं      हमेशा से । बहुत खूब ! आदरणीय बागी जी , कथा के लिये बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 6, 2014 at 6:07pm

क्यूंकि अब दस रुपया पुलिस की झोली में जाएगा !!! क्या होगा इस देश का ?? बहुत सटीक लघु कथा है ...बिजली की चोरी तो हर जगह हो रही है और गाँव में तो .!!..कोई हिसाब ही नहीं ..बहुत- बहुत बधाई आपको आ० गणेश जी इस सार्थक लघु कथा के लिए | 

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on August 6, 2014 at 9:38am

चंद शब्दों में हिन्दोस्तान की हालत व्यान कर दी बागी साहब  वाह। 

Comment by विनय कुमार on August 6, 2014 at 2:36am

यथार्थ दिखाती लघुकथा , ढेरों बधाईयां गणेश जी ..

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 5, 2014 at 10:42pm

आदरणीय गणेश बागी जी नमस्कार बहुत दिनों बाद इस आश्रम में आने का मौक़ा मिला आते हि आपकी सभी लघु कथाएँ पढ़ी  

सभी एक से बढ़  कर एक थी| आपकी अतुकांत कविताएँ भी बहुत अच्छी लगी| आदरणीय योगराज जी को भी सादर नमस्कार 

कोशिस करूँगा ओ.बी.ओ.में सहभागिता की . सुन्दर रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई 

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