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झुकी पलकों कि उल्फत का इशारा मिल गया होगा ।
कि सहरा को समंदर का नज़ारा मिल गया होगा ।
अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।
घटाओं की अँधेरी रात में उम्मीद जागी है ,
गगन में टिमटिमाता इक सितारा मिल गया होगा ।
सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा ।
निगाहों ने कहा मुझ से कि सूरत सी नही सूरत ,
फलक से चाँद धरती पर उतारा मिल गया होगा ।
मियादी का समय बीता नहीं आया अभी तक वो ,
कि कोई हमनवा मुझ से पियारा मिल गया होगा ।
भँवर तूफ़ान तो मचले मगर कश्ती सलामत है ,
मुझे मालिक कि रहमत का सहारा मिल गया होगा ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा
Comment
बहुत खूब!
अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।
बहुत खूब कहा आ० नीरज जी , हार्दिक बधाई .
बहुत खूब ..बधाई
बहुत सुन्दर कहा आपने i आपको बधाई i
अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।
सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा ।///////वाह भाई वाह। …। बहुत बहुत बधाई
आदरणीय नीरज प्रेम भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , वाह ! मज़ा आगया |
झुकी पलकों कि उल्फत का इशारा मिल गया होगा ।
कि सहरा को समंदर का नज़ारा मिल गया होगा ।
अभी था रो रहा बच्चा अभी है खेलता हँसता ,
कि खोया था खिलौना जो दुबारा मिल गया होगा ।
सुखों की ख्वाहिशें जिसने समझ से छोड़ दी होंगी ,
उसे दुःख के भँवर से भी किनारा मिल गया होगा ।
भँवर तूफ़ान तो मचले मगर कश्ती सलामत है ,
मुझे मालिक कि रहमत का सहारा मिल गया होगा । इन अश'आर के लिए दिली बधाई क़ुबूल करें |
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