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राष्ट्र-रूप (घनाक्षरी) // --सौरभ

देश  है नवीन  किन्तु, राष्ट्र है सनातनी ये,  मान्यता और संस्कार की  लिये निशानियाँ
था समस्त लोक-विश्व क्लिष्ट तम के पाश में, भारती सुना रही थी नीति की कहानियाँ
संतति  प्रबुद्ध मुग्ध  थी  सुविज्ञ  सौम्य उच्च, बाँचती थी धर्म-शास्त्र को सदा जुबानियाँ
स्वीकार्यता  चरित्र  में,   प्रभाव  में  उदारता,   शांत  मंद  गीत  में  सदैव थीं रवानियाँ

खिड़कियाँ खुली रखीं, खुले रखे थे द्वार भी, शांति-ज्ञान-भक्ति का सुदीप भी जला रहा
किन्तु  आँधियाँ  चलीं  कि  राख-धूल  भर  गयी, राक्षसी प्रहार झेलने का मामला रहा  
हत रहा था भाग्य  किन्तु  चेतना जगी रही, भारती  का रूप दिव्य शस्य-श्यामला रहा
सहस्र वर्ष ग्लानि की  अमावसें हुई विदा,  स्वतंत्र  सूर्य  शक्ति  का व्यापना भला रहा      

नीतियाँ बनीं यहाँ  कि तंत्र जो चला रहा, वो श्रेष्ठ भी दिखे भले,  परन्तु लोक-छात्र हो
तंत्र  की  कमान  जन-जनार्दनों के  हाथ हो,  त्याग  दे वो राजनीति जो लगे कुपात्र हो
भूमि-जन-संविधान,  विन्दु  हैं  ये  देशमान,  संप्रभू  विचार में न  ह्रास लेश मात्र हो
किन्तु  सत्य  है यही  सुधार हो सतत यहाँ, ताकि राष्ट्र का समर्थ शुभ्र सौम्य गात्र हो
*****************
--सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 12, 2014 at 5:00pm

आदरणीय विजय जी, आपकी सम्मति मिली मेरा रचनाकर्म सार्थक हुआ.
अनुमोदन हेतु सादर धन्यवाद.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on August 12, 2014 at 2:10pm

आदरणीय सौरभ भाईजी,

सभी पंक्तियों में ओज है प्रवाह है भारत का इतिहास है वर्तमान है अच्छे भविष्य के लिए कुछ सही सुझाव भी हैं और शुरुवात भी शानदार हुई है........     

देश  है नवीन  किन्तु, राष्ट्र है सनातनी ये मान्यता व संस्कार की  लिये निशानियाँ 

स्वीकार्यता  चरित्र  में,   प्रभाव  में  उदारता,   शांत  मंद  गीत  में  सदैव थीं रवानियाँ 

 

हत रहा था भाग्य  किन्तु  चेतना जगी रही, भारती  का रूप दिव्य शस्य-श्यामला रहा 
सहस्र वर्ष ग्लानि की  अमावसें हुई विदा स्वतंत्र  सूर्य  शक्ति  का व्यापना भला रहा      

 

पाठक का सीना पढ़ते - पढ़ते ही गर्व से फूलने लगता है।  

नीतियाँ बनीं यहाँ  कि तंत्र जो चला रहा, वो श्रेष्ठ भी दिखे भले परन्तु लोक-छात्र हो 
तंत्र  की  कमान  जन-जनार्दनों के  हाथ हो त्याग  दे वो राजनीति जो लगे कुपात्र हो 
भूमि-जन-संविधान विन्दु  हैं  ये  देशमान संप्रभू  विचार में न  ह्रास लेश मात्र हो 
किन्तु  सत्य  है यही  सुधार हो सतत यहाँ, ताकि राष्ट्र का समर्थ शुभ्र सौम्य गात्र हो

 

मन की बात कह दी कुछ कठोरता के साथ, लेकिन अच्छी सलाह भी दे दी ,

काश इस घनाक्षरी की प्रतियाँ लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा के सभी सदस्यों मंत्रालय सचिवालय में बट जाती और वे इस पर अमल करते तो अच्छे दिन अवश्य आ जाते॥

आदरणीय क्षमा प्रार्थना के साथ अपनी बात कह रहा हूँ........ पूरी 12 पंक्तियों में प्रवाह है किंतु प्रथम पंक्ति का द्वितीय चरण कुछ बाधित लगता है ( शायद मात्रा कम / ज़्यादा है )

मान्यता व संस्कार की  लिये निशानियाँ ..... “ व ” अवरोध पैदा करता है इसे हटा देने से ...

देश  है नवीन  किन्तु, राष्ट्र है सनातनी,  ये  मान्यता, संस्कार की  लिये निशानियाँ 

अथवा......देश  है नवीन  किन्तुराष्ट्र है सनातनी,  मान्यता, संस्कार की  लिये हुए निशानियाँ 

भाईजी आपकी प्रतिक्रिया से मुझे भी कुछ सीखने मिलेगा , धृष्टता  के लिए  पुनः क्षमा चाहता हूँ 

सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 12:06pm

आ० भाई सौरभ जी , इस समझाईस भरी  रचना के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 10:03am

बहुत सुंदर रचना. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सौरभ जी

Comment by kalpna mishra bajpai on August 11, 2014 at 7:29pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।/सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:16pm

आदरणीय सौरभ जी

आपने बहुत अच्छा समझाया  i आपका  आभार i

Comment by savitamishra on August 11, 2014 at 3:32pm

बहुत खुबसुरत .._/\_

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 3:00pm

बहुत कठिन है ऐसी उत्कृष्ट रचना का सर्जन।

//खिड़कियाँ खुली रखीं, खुले रखे थे द्वार भी, शांति-ज्ञान-भक्ति का सुदीप भी जला रहा
किन्तु  आँधियाँ  चलीं  कि  राख-धूल  भर  गयी, राक्षसी प्रहार झेलने का मामला रहा  //

अलौकिक बिम्ब बनाती इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:18pm

आदरणीय विजयजी, आपका औदार्य मुझे अभिभूत कर रहा है.
प्रस्तुति को सम्मान देने के लिए आपका सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:18pm

भाई रामशिरोमणी, आपकी उपस्थिति ने मुझे एक बार ऊर्जस्वी कर दिया है. विश्वास है, आपका भी रचनाकर्म सतत बना रहेगा.
शुभ-शुभ

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