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अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या खुद एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते
मुहब्बत के दरीचों से जरा सी धूप मिल जाती
छतों की झिरकियाँ पटती मकाँ उनके सुधर जाते
जिया ख़ुर्शीद की उनकी तरफ भी मुस्कुरा देती
उजाले उन अभागों के चिरागों में उतर जाते
ये कैसे फैसले मालिक कँही सूखा कँही जल-थल
न चौखट पे तेरी आते बता तू ही किधर जाते
सदाक़त= सच्चाई
जिया---रोशनी/किरण /चमक
ख़ुर्शीद—सूर्य
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
शेर दर शेर इतनी खूबसूरत विस्तृत समीक्षा को देखकर मैं अभिभूत हूँ मिथिलेश जी बहुत बहुत शुक्रिया
आपने मतले में जो हम लिया है वो भी सही है क्यूंकि आप उस दिशा में सोच रहे हैं जैसे की ये पाठक की स्वतंत्रता है कई बार लेखक की पंक्तियों के कई कई अर्थ निकल जाते हैं उसका हर तरह से विश्लेष्ण उस लेखन को और ऊँचाई बक्श्ता है इसी तरह ये मतला भी है किन्तु मेरा जो भाव इसमें निहित है वो मैं स्पष्ट करूँ तो आप भी मेरी उपर्युक्त बात से सहमत होंगे ----
अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या खुद एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते-----अर्थात यदि तुमने कभी किसी के टूटने के दर्द को महसूस किया होता तो आज तुम खुद टूट कर इस तरह ना बिखरे होते अर्थात अनुभव् के आधार पर वक़्त रहते संभल जाते .....अब देखिये आपके भाव और मेरे भाव बिलकुल अलहदा हैं किन्तु दोनों चलेंगे ......हाहाहा ...मतले की सपोर्ट में ही हुस्ने मतला लिखा गया है
अगर तुम टूटने के दर्द को महसूस कर जाते
तो क्या हम एक पल में टूटकर इतना बिखर जाते..........बहुत ही बेहतरीन मतला (हम पढ़कर मुझे गाने में अधिक लुत्फ़ आया इसलिए ये हिमाकत की )
रिदाएँ गर्द की जब तब हटाते आइनों से तुम
दिलों के फासले मिटते कई रिश्ते सँवर जाते ...क्या कहने बहुत बेहतरीन
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते.................
......
पहेली सी बने फिरते बड़े मदमस्त ये बादल .......
कहीं ख़ाली गरजते उफ़ कहीं हद से गुजर जाते............ दोनों बेहद उम्दा अशआर ... मेरे लिए पाठशाला के दो चेप्टर ... एक शेर में इधर- उधर की तकरार और दुसरे में उफ़ और हद का सीधे दिल पर वार ..... कमाल के शेर
तुम्हारे झूठ के छाले लगे रिसने सफ़र लम्बा
सदाक़त की यहाँ है छाँव पल भर को ठहर जाते ... उम्दा अशआर
मुहब्बत के दरीचों से जरा सी धूप मिल जाती
छतों की झिरकियाँ पटती मकाँ उनके सुधर जाते .......... क्या बात है ये भी कमाल का अशआर है
जिया ख़ुर्शीद की उनकी तरफ भी मुस्कुरा देती
उजाले उन अभागों के चिरागों में उतर जाते......... बेहतरीन शेर
आदरणीया राजेश कुमारी जी नमन शत शत प्रणाम .... ग़ज़ल सीखने के लिए "न चौखट पे तेरी आते बता तू ही किधर जाते "
प्रिय मीना जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत-बहुत शुक्रिया |
बहुत खूबसूरत गज़ल हुई आ० राजेश कुमारी जी ..हार्दिक बधाई स्वीकारें
प्रिय सविता मिश्रा जी,आपकी इस प्यारी सी प्रतिक्रिया की बेहद शुक्रगुजार हूँ शुभकामनायें |
कितना खुबसुरत लिख लेते है आप लोग .....बहुत बहुत बधाई दी आपको इतनी सुन्दर गजल के लिय
आ० सौरभ जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,इस होंसलाफ्जाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारीजी.
झुलसते जिस्म फसलों के उमड़ती प्यास धरती की
चिढ़ाते बेवफ़ा बादल इधर जाते उधर जाते
ग़ज़ब !
भुवन निस्तेज भैया,आपने इस ग़ज़ल को जो मान बक्शा है उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया आपकी सराहना पाकर रचना सार्थक हुई |
आदरणीय राज दीदी इस गज़ल को बर बर पढ रह हूँ ताकी कोइ एक शेर ले लूँ जिसे कमेन्ट के साथ पेस्ट करूँ, पर सच् कहे तो कोइ शेर किसी से कम नहीं, बेहतरीन व बेमिशाल. आपकी लेखनी को शत शत नमन....
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