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कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए
ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए
बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए
समान हक़ है मिला सभी को पढ़ाई का
गरीब बच्चों से पाठ शाला न छीनिए
जुड़े खुदा से वहाँ इबादत के तार हैं
उन उँगलियों में थिरकती माला न छीनिए
पुछल्ला ---
यकीं नहीं है कि वो शराफ़त दिखायेगा
कभी किसी बेवड़े से हाला न छीनिए
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
मिथिलेश जी,मेरी पुरानी ग़ज़लों को रीफ्रेश करने का बहुत- बहुत शुक्रिया ,आपको ये ग़ज़ल प्रभावित की मेरा लिखा सफल हुआ हार्दिक आभार आपका.
कभी लबों तक पँहुचता प्याला न छीनिए
ग़रीब के हाथ से निवाला न छीनिए ........... बेहतरीन मतला
यतीम का बचपना निराला न छीनिए
जमीन, दरगाह या शिवाला न छीनिए ........ बहुत अच्छा हुस्ने मतला
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए..... उम्दा शेर
बहुत अच्छी और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको....
आ० विजय मिश्र जी ,आपको अशआर प्रभावित कर पाए मेरा लिखना सार्थक हुआ आपकी इस उत्साह्वर्धनीय प्रतिक्रिया की तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ .
आ० संतलाल करुण जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई, मेरी कलम को संबल मिला तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ सादर .
आदरणीया राकेश कुमारी जी,
इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --
"बड़ी नहीं कोई चीज़ तहजीब से यहाँ
नक़ाब, सिर पे ढका दुशाला न छीनिए"
आ० गिरिराज जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभारी हूँ
आदरणीया राजेश जी , हमेशा की तरह ये ग़ज़ल भी आपके बहुत बढ़िया कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें |
आ० डॉ.गोपाल नारायण जी ,आपको ग़ज़ल के अशआर प्रभावित किये मेरा लिखना सफल हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ सादर.
महनीया
बेहतरीन गजल i कई अशआर बहुत ही अच्छे है -
नसीब में क्या लिखा यहाँ कौन जानता
किसी जवाँ दीप का उजाला न छीनिए
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